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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७८) भारत-भैषज्य रत्नाकर [२२४] असुरादि अञ्जन नं. ९ । शिरीषबीजं मरिचोपकुल्या (वृ. नि. र.) मूत्रेण घृष्टं सह सैन्धवेन। असुराहस्य विट्चूर्ण कस्तूरीमधुसंयुतम् । । नेत्राञ्जनं स्यानयने नराणां अञ्जनाद्बोधयेन्मुग्धं तन्द्रितं सन्निपातिनम् ।। प्रनष्टसंज्ञं प्रकरोति बोधः॥ ____ कांसीके भैलका चूर्ण और कस्तूरीको बारीक | पीसकर मधुमें मिलाकर अञ्जन लगानेसे सन्निपात सिरसके बीज, काली मिर्च, पीपल और सेंधा की बेहोशी और तन्द्रा दूर होती है। नमक इनको गोमूत्रमें पीसकर अञ्जन लगाने से [२२५] अञ्जन नं. १० (बोधक) (हा. सं.) बेहोशी दूर होती है। अथ अकारादि नस्य प्रकरणम् [२२६] अगस्तिपत्र-नस्यम् (बृ. नि. र.) | हितकारी है। एवं कुत्ते, गीदड़, बिल्ली तथा अखण्डितशरत्कालकलानिधिसमानने। सिंहादिके मूत्रकी नस्य भी हितकर है। चातुर्थिकहरं नस्य मुनिद्रुमदलाम्बुना॥ (१) भारंगी, वच और नागदन्ती, (२) श्वेत हेचन्द्रमुखि ! अगस्ति (अगथिया) के पत्तोंके | अपराजिता और वृहत् मेढा शृङ्गी, (३) माल रसकी नस्य लेनेसे चातुर्थिक ज्वरका नाश होता है। | कंगनी और नाग दन्ती इन तीनों प्रयोगोंमें से २२७] अपस्मारहरनस्यम्(१) (वृ.नि. र.)| किसीको गोमूत्रमें पीसकर पांच छ: बिन्दु नाकमें आरण्यत्र सीचूर्ण नस्येनापस्मृतिं जयेत् ॥ | टपकाने से अपस्मारका नाश होता है। बनखीरेके चूर्णका नस्य अपस्मार रोगका | त्रिफला, त्रिकुटा, दारु हल्दी, यवक्षार,तुलसी, नाश करता हैं। काली निसोत, अपामार्ग और करञ्जवेके फलोंके [२२८] अपस्मारहरनस्यम् (२) (च. सं.)| कल्क तथा बकरेके मूत्रसे सिद्ध तैलकी नस्य देनेसे कपिलानां गवां मूत्रं नावनं परमं हितम्। | अपस्मारका नाश होता है। श्वशृगालविडालानां सिंहादीनाश्च शस्यते ॥ [२२९] अश्वगन्धादि नस्यम् भाङ्गी वचा नागदन्ती श्वेता शता विषणिका। | तुरंगगन्धा लवणोपगन्धा ज्योतिष्मती नागदन्ती पादोत्था मूत्रपेषिताः॥ मधूकसारोषणमागधीभिः। योगास्त्रयोऽतः षड्विन्दून् पञ्च वा नावयेद्भिपक्| वस्ताम्बुशुण्ठीलशुनान्विताभित्रिफलाव्योषपीतद्रुयवक्षारफणिञ्झकैः॥ नस्यं त्वसंभुनदृशं करोति ॥ श्यामापामार्गकारञ्जफलैमत्रेऽथ वस्तजे। । असगन्ध, सेंधानमक, वच, महुवेका सार, साधितं नावनं तैलमपस्मारविनाशनम् ॥ | मरिच, पीपल, सोंठ और ल्हसनको बकरेके मूत्रमें अपस्मारमें कपिला गायके दूधकी नस्य अत्यन्त 'पीसकर नस्य लेनेसे नेत्र स्वच्छ होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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