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(७८)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
[२२४] असुरादि अञ्जन नं. ९ । शिरीषबीजं मरिचोपकुल्या (वृ. नि. र.)
मूत्रेण घृष्टं सह सैन्धवेन। असुराहस्य विट्चूर्ण कस्तूरीमधुसंयुतम् । ।
नेत्राञ्जनं स्यानयने नराणां अञ्जनाद्बोधयेन्मुग्धं तन्द्रितं सन्निपातिनम् ।।
प्रनष्टसंज्ञं प्रकरोति बोधः॥ ____ कांसीके भैलका चूर्ण और कस्तूरीको बारीक | पीसकर मधुमें मिलाकर अञ्जन लगानेसे सन्निपात सिरसके बीज, काली मिर्च, पीपल और सेंधा की बेहोशी और तन्द्रा दूर होती है। नमक इनको गोमूत्रमें पीसकर अञ्जन लगाने से [२२५] अञ्जन नं. १० (बोधक) (हा. सं.) बेहोशी दूर होती है।
अथ अकारादि नस्य प्रकरणम् [२२६] अगस्तिपत्र-नस्यम् (बृ. नि. र.) | हितकारी है। एवं कुत्ते, गीदड़, बिल्ली तथा अखण्डितशरत्कालकलानिधिसमानने। सिंहादिके मूत्रकी नस्य भी हितकर है। चातुर्थिकहरं नस्य मुनिद्रुमदलाम्बुना॥ (१) भारंगी, वच और नागदन्ती, (२) श्वेत
हेचन्द्रमुखि ! अगस्ति (अगथिया) के पत्तोंके | अपराजिता और वृहत् मेढा शृङ्गी, (३) माल रसकी नस्य लेनेसे चातुर्थिक ज्वरका नाश होता है। | कंगनी और नाग दन्ती इन तीनों प्रयोगोंमें से २२७] अपस्मारहरनस्यम्(१) (वृ.नि. र.)| किसीको गोमूत्रमें पीसकर पांच छ: बिन्दु नाकमें आरण्यत्र सीचूर्ण नस्येनापस्मृतिं जयेत् ॥ | टपकाने से अपस्मारका नाश होता है।
बनखीरेके चूर्णका नस्य अपस्मार रोगका | त्रिफला, त्रिकुटा, दारु हल्दी, यवक्षार,तुलसी, नाश करता हैं।
काली निसोत, अपामार्ग और करञ्जवेके फलोंके [२२८] अपस्मारहरनस्यम् (२) (च. सं.)| कल्क तथा बकरेके मूत्रसे सिद्ध तैलकी नस्य देनेसे कपिलानां गवां मूत्रं नावनं परमं हितम्। | अपस्मारका नाश होता है। श्वशृगालविडालानां सिंहादीनाश्च शस्यते ॥ [२२९] अश्वगन्धादि नस्यम् भाङ्गी वचा नागदन्ती श्वेता शता विषणिका। | तुरंगगन्धा लवणोपगन्धा ज्योतिष्मती नागदन्ती पादोत्था मूत्रपेषिताः॥ मधूकसारोषणमागधीभिः। योगास्त्रयोऽतः षड्विन्दून् पञ्च वा नावयेद्भिपक्| वस्ताम्बुशुण्ठीलशुनान्विताभित्रिफलाव्योषपीतद्रुयवक्षारफणिञ्झकैः॥ नस्यं त्वसंभुनदृशं करोति ॥ श्यामापामार्गकारञ्जफलैमत्रेऽथ वस्तजे। । असगन्ध, सेंधानमक, वच, महुवेका सार, साधितं नावनं तैलमपस्मारविनाशनम् ॥ | मरिच, पीपल, सोंठ और ल्हसनको बकरेके मूत्रमें
अपस्मारमें कपिला गायके दूधकी नस्य अत्यन्त 'पीसकर नस्य लेनेसे नेत्र स्वच्छ होते हैं।
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