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- भैषज्य-र भारत- -रत्नाकर
(६८)
साथ १६ सेर तेलका पाक सिद्ध करे । यह तेल । पुष्पैई बेरमधुकः शारिवापद्मकेशरैः ॥ वातरक्त, क्षत, क्षीणता, वीर्यकी अल्पता, भार | मेदापुनर्नवा द्राक्षा मजिष्ठावृहतीद्वयैः । उठानेसे उत्पन्न हुवे विकार, कंपन, भग्न, सर्वांग एलैलवालुत्रिफलामुस्तचन्दनपद्मकैः ॥ बात रोग, एकांग वात रोग, योनिदोष, अपस्मार, पक्कं रक्ताशयं वातं रक्तपित्तमसृग्दरम् । उन्माद और विषमज्वर का नाश करता है । इन्त्यात्पुष्टिवलं कुर्यात् कृशानां मांसवर्द्धनम् ॥ [१८६] अर्कपत्ररस-तैलम् रेतोयोनिविकारनं व्रणदोषापकर्षणम् । (बृ. नि. र. ) षण्डानपि वृषान् कुर्यात् पानाभ्यङ्गानुवासनैः ॥ अर्कपत्ररसे पक्कं हरिद्राकल्कसंयुतम् । नाशयेत्सार्षपं तैलं पानां कच्छु विचर्चिकाम् || आकके पत्तोंका रस ४ सेर और २० तोला हल्दी के कल्कसे सिद्ध किया हुवा १ सेर सरसोंका तेल पामा, कच्छु और विचर्चिकाका नाश करता है । [१८७] अर्कादितैलम्
(बृ. नि. र.)
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अर्कस्य च रसप्रस्थं प्रस्थं धत्तूरकस्य च । श्वेतस्नुहीरसप्रस्थं प्रस्थं सौभांजनाद्रसात् ॥ कुष्ठसैन्धवयोः कल्कं पले द्वे द्वे प्रमाणतः । तैलप्रस्थं काञ्जिकेन पचन् मृद्वग्मिना समम् ॥ खल्लीं विषूचिकां हन्ति पक्षाघातं च गृध्रसीम् आकके पत्तों का रस १ सेर, धतूरेका रस १ सेर, सफ़ेद थोहरका रन १ सेर, सौंजनेका रस १ सेर, काञ्जी १ सेर । कूठ और सेंधा नमक प्रत्येक १०-१० तोले का कल्क | इनके साथ १ सेर तेलका मंदाग्नि पर पाक सिद्ध करे । इत तैलकी मालिश से खल्ली (हाथ पैरों की ऐंठन), हैजा, पक्षाघात और गृध्रसी का नाश होता है । [१८८] अश्वगन्धा तैलम्
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(च. द., वा. व्या., ग. नि. तैला . ) शतं पक्त्वाश्वगन्धाया जलद्रोणेऽशशेषितम् । विस्राव्य विपचेत्तैलं क्षीरं दत्वा चतुर्गुणम् ॥ कल्के मृणालशालक विसकिञ्जल्क मालती
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| सेर असगन्ध को ३२ सेर जलमें पकावे, चौथा भाग शेष रहनेपर छानले । फिर इस क्वाथ और ८ सेर दूध तथा निम्नलिखित कल्क से २ सेर तैल सिद्ध करें ।
कल्क द्रव्य :- कमलनाल, कमलका कन्द, कमलनाल के भीतर के बारीक तंतु, कमल कोष (जिसमें कमलके बीज रहते हैं), मालतीके फूल, सुगन्धवाला, मुलैठी, सारिवा, कमलकेसर, मेदा, पुनर्नवा, मुनक्का, मजीठ, कटेली, बडी कटेली, इलायची, एलवाल, त्रिफला, नागरमोथा, लाल चन्दन और पद्माख । यह तैल रक्ताशयगतवायु (हृद्गतवात), रक्तपित्त, रक्तप्रदरका नाश करता है । इसके सेवनसे बल, पुष्टि और मांसवृद्धि होती है । वीर्यविकार, योनिविकार, ब्रणदोष और नपुंसकता इसके प्रभाव से नाश होती है । इसे पान, अभ्यङ्ग और अनुवासन वस्तिके द्वारा सेवन करना चाहिये । [१८९] अश्वगन्धादितैलम् (बृ. नि. र; यो. र. ज्वर)
अश्वगन्धा बला लाक्षा प्रस्थं प्रस्थं पृथक् पृथक् जले द्रोणे विपक्तव्यं चतुर्भागावशेषितम् ॥ तैलं त्रिमानकं दद्याद्दधिमस्तु चतुर्गुणम् । अश्वगन्धा शिला दारू कौन्ति कुष्ठान्द चन्दनैः।। निशा तिक्ता शताह्वा च लाक्षा मूर्वा समूलकैः। सुरदारु च मंजिष्ठा मधुकोशीर शारिवा ॥
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