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(६२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
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यह घृत अर्श और अतिसार के रक्तस्राव, । मुल्हैठी, अशोक की जड़ की छाल, मुनक्का, शताप्रवाहिका, गुदभ्रंश (कांच निकलना), गुदशोथ, वर, चौलाई की जंड, प्रत्येक २॥२॥ तोले मूत्रावरोध, मूवात, मन्दाग्नि, अरुचि आदि का | इनके कल्क के साथ १ सेर घृत का पाक सिद्ध नाश करता है तथा वल वर्ण और अग्नि वईक करे । फिर ठण्डा होने पर ४० तोला शर्करा मिलावे । है। इसे विविध प्रकार के अन्न पान के साथ यह घृत सफेद, नीला, पीला आदि सब प्रकार के अथवा अकेले ही सेवन करना चाहिये। प्रदर रोग, कोख का शूल, कमर और योनी की
[१७१] अशोक घृतम् (भै. र. स्त्री. रो.) पीड़ा, मन्दाग्नि, अरुचि, पाण्डु, दुबला पन, श्वास, अशोकवल्कलप्रस्थं तोयाढकविपाचितम् ।
कामला, और स्त्रियों के सब रोगों का नाश पादस्थेन घृतप्रस्थं जीरकक्वाथसंयुतम् ।।
| करता है । बल, वर्ण, पुष्टि और आयु वर्द्धक है । तण्डुलाम्बुत्वजाक्षीरं घृततुल्यं प्रदापयेत् ।
[१७२] अश्वगन्धादिघृतम् (न. मृ.) तथैव केशराजस्य प्रस्थ मेकं भिषग्वरः ।। अश्वगन्धा प्रस्थमेकं दुग्धं चैवाढकद्वयम् । जीवनीयैः प्रियालैस्तु परुषैः सरसाञ्जनैः।
घृतप्रस्थमितं दद्याच्छनैमृद्वग्निना पचेत् । यष्टयाह्वयाशोकमूलश्च मृद्वीका च शतावरी ।।
त्रिकटुकं चतुर्जातं विडङ्ग जातिपत्रकम् । तण्डुलीयकमूलश्च कल्कैरेभिर्पलाईकैः। बला चातियला चैत्र श्वदंष्ट्रा वृद्धदारुकम् ॥ शर्करायाः पलान्यष्टौ सिद्धशीते प्रदापयेत् ॥
मिटीले प्रदाता पलैकश्च प्रदातव्यं लोहं वङ्ग तथाभ्रकम् । पीतमेतद्धृतं हन्ति सर्वदोष समुद्भवम् ।।
| प्रस्थाद्धं माक्षिक दद्यात्प्रस्था॰ शर्करा शुभा ॥ श्वेतं नीलं तथा कृष्णं प्रदरं हन्ति दुस्तरम् ।।
सर्वमेतद्विनिक्षिप्य स्निग्धे भाण्डे निधापयेत् । कुक्षिशूल कटीशूलं योनिशूलञ्च सर्वगम् ।
द्वौ कालौ भक्षयेन्नित्यं समीक्ष्याग्नि बलं यथा ॥ मन्दाग्निमरुचिं पाण्डु कृशतां श्वासकामलाम् ॥
अर्थ वातं हनुस्तम्भं सन्धिवातं कटिग्रहम् । आयुः पुष्टिकरं बल्यं बलवर्णप्रसादनम्।
गर्भप्रसवजान्दोषाञ्छुक्रदोषांस्तथैव च ॥ देयमेतत्परं सर्पि विष्णुना परिकीर्तितम् ॥
सर्ववातानिहन्त्येतद्यथोन्मत्तगज हरिः।
| अश्वगन्धादिविख्यातं घृतं वाजीकरं परम् ।। १ सेर अशोक की छाल । ४ सेर जल में
___ आसगन्ध १ सेर, दूध ८ सेर, घृत १ सेर, पका कर चौथाई रहने पर छान ले इस काढ़े
यथा विधि पाक करके उसमें त्रिकुटा, चातुर्जात, और जीरेका क्वाथ, चावलों का पानी, बकरी का
बायबिडंग, जावित्री, बला, अतिबला, गोखरू और दूध तथा भांगरे का रस प्रत्येक १-१ सेर और
विधारा, प्रत्येक ५-५ तोला, और लोह भस्म, जीवनीय गण, पियाल (चिरौंजी), फालमा, रसौत, .
। बंग भस्म, अभ्रक भस्म, प्रत्येक ५-५ तोला, शहद १ जीवकर्षभको मेदे काकोल्यौ शूर्पपणिके ।
०॥ सेर और चीनी आधा सेर मिलावे फिर धृत जीवन्ती मधुकञ्चेति दशको जीवनो गणः॥ के बरतन में भरकर रक्खे । इसके दोनों समय जीवनीय गण-जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्रपर्णी, |
सेवन करने से अर्दित, हनुस्तम्भ, सन्धि बात, माषपणी, जीवन्ती, ल्हैठी।
कमर का रह जाना, प्रसूत रोग, शुक्र दोष, और
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