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परिशिष्ट (चि. प. प्र.)
वण]
६७१
(४९) व्रणाधिकारः कषाय-प्रकरणम ! ९३७३ कोशातकी तै० अनेक विध दुष्ट व्रणों ८७८५ अपामार्गासयो० सद्योव्रण (सरल योग०)
को शीघ्र नष्ट करता ९२०५ करनादि स्व० वणकृमि
है वह । लिंग व्रण कि
जिसमें मांस सड़ गया चूर्ण-प्रकरणम्
हो नष्ट होता है ९२४७ कर्पूरादि चू० शस्त्राघातके व्रणकी पीड़ा को शान्त करता है
लेप-प्रकरणम् और पकने नहीं देता (सरल योग)
८८७५ अपामार्गपत्रलेपः रक्त रोधक
८८७८ अभयादि लेपः गम्भीरत्रण शोधक स. घृत-प्रकरणम्
रल योग ९१२१ करनार्थ घृ० दुष्ट व्रण, नाड़ी व्रण, ८८९५ अश्वगन्धादि ले. वणनाशक उत्तम सद्य छिन्न वण
८८९९ अश्वत्थादि ले० रोपण । ९३२२ कपूरसर्पिः शस्त्राघातकी पीड़ा को
९०८६ इन्द्रवारु० मू० ले० नष्ट शल्यको निकाल नष्ट करता और पकनेसे
देता है रोकता है
९३८० कट्फलादि लेपः दुष्ट व्रण
९३८८ कपोतवङ्कादि लोम सञ्जनन तैल-प्रकरणम्
९३९० करञ्जयोगः कृमिनाशक
९४०४ काकजङ्घाले० शस्त्राघातका व्रण बिना ८८५९ अपामार्ग मू० त० शबाघातकी पीड़ा
व्यथा और बिना पके ९१६० एरण्डतैलयोगः दुष्ट व्रण
नष्ट हो जाता है ९३४१ कम्पिल्लकतै० व्रण, प्रन्थि ९३४२ कम्पिल्लकाध व्रण ९३४८ कर्कोटकाचं दुष्ट व्रण
मिश्र-प्रकरणम् ९३५९ कालानुसार्यादि वगरोपण | ९५३१ कङ्गुणीमूल योगः गाढ़े पीपवाला नाडीव्रण ९३६३ कुम्भीकायं तै० शल्य जनित नाडीव्रण | ९५६७ कोद्रवानोपयोगः नाड़ी व्रण
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