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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-अवलेह (४९) पान, ताप तथा मैथुन आदि का त्याग नहीं करना धात्री रात्रिश्च मंजिष्टा मरिच नागरं कणा । पड़ता। इसके सेवन से बल, पुष्टि, कान्ति, मेधा, यवानी सैन्धवं मुस्तं वगेला नागकेशरम् ।। बुद्धि आदि बढ़ती हैं, गिरे हुवे दांत निकल आते पपेटः बालमुशीरं चन्दन तथा। हैं, सफेद बाल काले हो जाते हैं, त्वचा का गोक्षुरस्य च कचूरो रक्तचन्दनम ।। विवर्णत्व दूर होकर रंग सुन्दर हो जाता है । जिस पृथक्पलार्द्धमानानामेपां चूर्णमिदं क्षिपेत् । कोढ़ी के कान, उंगली और नाक आदि गल गये सम्यक् सम्मिश्य तद्रक्षेद् भाजने मृन्मये नवे ।। हों और कीडे पड गये हों मांस भी गल गया हो ! प्रभाते भक्षिते जीर्णोऽमृतमल्लातकाभिधम् । इससे, जिस प्रकार वर्षा जलसिञ्चित वृक्ष पुनः अवलेहं समश्नीयात् पलमा जलेनहि ॥ अङ्कुरित हो जाता है वैसे ही इसको भी धीरे २ प्रकृत्या देहिनो यस्य सहतेऽरुष्करो न चेत् । . आराम हो जाता है। इसका सेवन करने वाला सोऽरुष्करस्य संसर्ग सदा दुरात्परित्यजेत् ॥ स्वर में ऊंट और मोरों को, बल में हाथी भल्लातकावलेहोऽयं वातरक्तान्त कन्मतः।। और गति मे घोड़ों को जीतने वाला हो जाता चातरक्तसमुद्भूतान विकारानानु नाशयेत् ।। है । इस रसायन के सेवन से वृहस्पति के समान ! कुष्ठानि सकलान्येव दुर्नामानि हरेदयम् । बुद्धि वाला हो जाता है, विशाल ग्रंथो को तथा विसर्प मण्डलं कण्डं शमयेदेष सेवितः ॥ पुनरूक्ति दोषों को शीत्र ही ग्रहण कर लेता है विकारान्वातिकान्सस्तिथा रुधिरसम्भवान् । और यह शक्ति फिर नष्ट नही होती, जो बुद्धिमान हरत्येव प्रयोगोऽयं यत्नतः सेवितः सदा ॥ इस का कल्प करता है वह १०५ वर्ष तक जीता व्यायाममातपं वह्निमम्लं मांसं दधि स्त्रियम् । है । यह योग भगवान अगस्तजीने सब रसायनो तैलाभ्यङ्गं तथा ध्यानं नरी भल्लातके त्यजेत् ॥ का राजा बताया है। पानीमें डूब जाय ऐसे भिलावे हितकर होते [१४६] अमृतभल्लातक्यावलेहः हैं । ऐसे मिलावे २ सेर लेकर १-१ के दो दो (वृ. नि. र. वा. र.) दल करके ३२ सेर पानीमें चढावे और उसमें निमञ्जन्ति जले यास्तु भल्लात्तक्यश्च ता हिताः का २ सेर गिलोय डालकर पकावे । ताच सवा विधातव्याः साछनमुखमुद्रिका ॥ चतुर्थाश रहने पर उतारे और छान कर गाढ़ा तासां प्रस्थद्वयं छित्वा द्विजलद्रोणे परिक्षिपेत् । करके उसमें सोंठ, गिलोय, हैड, बावची, पवांड, प्रस्थद्वयं गुडूच्याश्च क्षुण्णं तत्राम्भसि क्षिपेत् ॥ नीम चतुर्थाशावशेषन्तु कषायमवतारयेत् । सोंठ, पीपल, अजवायन, संधानमक. नागरवस्त्रपूते कषाये च वक्ष्यमाणानि निक्षिपेत् ॥ मोथा, दालचीनी, इलायची. नागकेशर, पित्तसर्वाण्येकत्र भाण्डे तु पचेन्मृद्वग्निना शनैः। पापडा, तेजपात, सुगन्धवाला, स. चन्दन, सर्वद्रव्ये घनीभूते पावकादवतारयेत् ॥ | गोखरू, कचूर और लाल चन्दन, प्रत्येक का तत्रक्षेप्याणि चूर्णानि ब्रूमो विश्वाऽमृता। २॥२॥ तोले का चूर्ण डाल कर खूब मिलावे बाकुची चर्कमर्दश्च पिचुर्मदो हरीतकी ॥ फिर मिट्टी के नथे बरतन में रवखे । मात्रा.५ तोला For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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