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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम्) परिशिष्ट (९५८४) खर्परशोधनम् (१) ( र. र. स. । पू. सं. अ. २; आ. वे. प्र.। अ. ९ ; रे. चं.) जो इन दोनोंको अग्निस्थायी कर लेता है उसके लिये देहको लोहमयी (अत्यन्त दृढ) बनाना तनिक भी कठिन नहीं रहता। रसको द्विविधः प्रोक्तो ददुरः फारवेल्लकः। । खपरियाको कड़वी तूंबीके रसमें पकाने से सदलो दरः प्रोक्तो निर्दलः कारवेल्लकः ॥ वह शुद्ध तथा पीतवर्ण हो जाता है। सस्वपाते शुभः पूर्वो द्वितीयश्वौषधादिषु । (९५८५) खपरशोधनम् (२) रसकः सर्वमेहनः कफपित्तविनाशनः॥ (भा. प्र. । पू. खं. १ : शा. ध. | ख. नेत्ररोगक्षयनश्च लोहपारदरअनः । २ अ. ११) नागार्जुनेन संदिष्टौ रसश्च रसकावुभौ ॥ । नरमूत्रे च गोमूत्रे सप्ताहं रसकं पचेत् । श्रेणी सिद्धरसौ ख्यातौ देहलोहकरौ परम् । दोलायन्त्रेण शुद्धः स्यात्ततः कार्येषु योजयेत् ॥ रसश्च रसकश्चोभौ येनानिसहनौ कृतौ ॥ खरं कटुकं क्षारं कषायं वामकं लधु । देहलोहमयो सिदिसी तस्य न संशयः। लेखनं भेदनं शीतं चक्षुष्यं कफपित्तहत् ॥ ___x x x x विषाश्मकुष्ठकण्डूनां नाशनं परमं मतम् ॥ कटुकालानिर्यासे आलोच्य रसकं पचेत् ॥ खर्परको दोलायन्त्र विधिसे सात दिन मनुष्यके शुदं दोषविनिर्मुक्तं पीतवणे च जायते ॥ मूत्र या गोमूत्रमें पकाने से वह शुद्ध हो जाता है। रसक ( खपरिया ) दो प्रकारका होता है। खर्पर कटु, क्षारयुक्त, कषाय तथा शीतल होता एक दलदार, जिसे " दर्दर" कहते हैं और है। यह नेत्रोंके लिये हितकारी, कफपित्त नाशक, दूसरा दल-रहित, जिसे "कारवेल्लक" कहते हैं। वामक, लघु, लेखन और भेदन है तथा विष, पथरी. सत्वपातनके लिये दर्दुर नामक खपरिया लेना कुष्ठ और कण्डूको नष्ट करता है। चाहिये और कारवेल्लकको औषधोंमें डालना चाहिये। | (९५८६) खर्परशोधनम् (३) खपरिया प्रमेहनाशक, कफपित्तनाशक, नेत्र- | । (र. र. स. । पू. खं. अ. २ ; आ. वे. प्र.। रोग और क्षयको नष्ट करने वाला तथा लोह और अ. ९ ; र. चं.) पारद को रंगने वाला है। खपरः परिसन्तप्तः सप्तवारं निमज्जितः । नागार्जुन ने रसक और रस, इन दोनों श्रेष्ठ | बीजपूररस यान्तर्निर्मलत्वं समश्नुते ॥ और देहको लोहके समान दृढ करने वाले सिद्ध खर्परको तपा तपा कर सात बार बिजौ रके रसोंका वर्णन किया है। रसमें बुझानेसे वह शुद्ध हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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