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लप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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अथ खकारादितैलप्रकरणम् (९५७९) खदिरादितैलम् कल्क-चन्दन ( सफेद ), अगर, केसर, (वा. भ. । उ. अ. २२ मु. रो. चि.)
मोथा, सुगन्धबाला, खस, देवदारु, लोध, दाख
(मुनक्का), मजीठ, दालचीनी, पनाक, बायबिडंग, खदिरतुलामम्बुघटे पक्त्वा तोयेन तेन पिष्टैश्च ।
स्पृक्का ( लज्जालु ) तगर, नखी, कायफल, छोटी चन्दनजोगककुङ्कुमपरिपेलवबालकोशीरैः॥
इलायची, ध्यामक ( कत्तण ) और पत्तंग; इनका मुरतरुरोधद्राक्षामभिष्ठाचोचपकविडङ्गैः।
चूर्ण १।-१। तोला लेकर सबको पानीके साथ स्पृक्कानतनखकट्फल
एकत्र पीस लें। सूक्ष्मैलाध्यामः सपतङ्गैः ॥
२ सेर तेलमें यह क्वाथ और कल्क मिलाकर तैलपस्थं विपचेकांशैः पाननस्यगण्डषैस्तत्। पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें। हत्वाऽऽस्ये सर्वगदाञ्जनपति
इसे पीने, इसकी नस्य लेने और इसके गण्डप शीघ्रं दृशं श्रुति च वाराहीम ॥
धारण करनेसे मुखके समस्त रोग नष्ट होकर दृष्टि क्वाथ-६ सेर खरसारको ३२ सेर पानीमें और श्रवण शक्ति बराहके समान ( आयन्त पकावें और ८ सेर शेष रहने पर छान लें। तीक्ष्ण ) हो जाती है।
इति खकारादितैलमकरणम्
अथ खकारादिरसप्रकरणम् (९५८०) खगेश्वररसः । श्वेतकुठं निइन्त्याशु श्वासकासगदानपि । (र. र. सं.। उ. अ. २० ; र. चं. । कुष्ठा.)
| सघृतः पित्तनं कुष्ठं मधुना मेहमेव च ॥
पथ्यं दोषानुरूपेण बुद्धेन मुनिनोदितम् ॥ पलेन प्रमितः सूतः पलेन प्रमिता वसा।
___ शुद्ध पारद, शुद्र गंधक और स्वर्णमाक्षिक खगः पलमित: सर्व मर्दयेदर्जुनद्रवैः ॥ भस्म ५-५ तोले लेकर तीनोंको एकत्र खरल करके गोलीकृत्य विशोष्याय गोलं कृप्यां निरुध्य च। कजली बनावें और उसे ( १ दिन ) अर्जुनकी ततस्तां सुदृढे भाण्डे मषां क्षिप्त्वा निरुध्य च ।। छालके क्वाथमें घोटकर गोला बनाकर सुखा लें। पचेत्साधुदिनं पश्चात्स्वाशीसं विचूर्णयेत् ।। इस गोलेको भूषामें बन्द करके बालकाखगेश्वरो रसो वल्लपमितः कुटजान्वितः ॥ यन्त्रमें रखकर हाण्डी पर शराव ढककर सन्धिको
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