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मिश्रप्रकरणम् ] . परिशिष्ट
६२३ कड़वी तंबी, इन्द्रायण और बिण्डाल डोडा। शामके वक्त केलेके फलको चीरकर उसके ( देवदाली का फल ) समान भाग लेकर चूर्ण | भीतरकी नस निकाल दें और उसमें काली मिर्चका बनावें और उसे गुड़में मिलाकर वर्ति बना लें। | चूर्ण भरकर रख दें। दूसेर दिन प्रातः काल इसे
इसे मुदामें रखनेमे अर्श मस्सों का समूह | मन्दाग्नि पर सेक कर खावें । शीघ्र ही नष्ट हो ताजा है।
__ यह प्रयोग श्वासको इस प्रकार नष्ट कर देता (९५३४) कदलीकन्दयोगः जिस प्रकार कुल्हाड़ी वृक्षोको । (ग. नि. । उदरा. ३२ ; रा. मा. । उदररो.) | (९५३७) कदलीफलादियोगः सपिडाभ्यां सह पाचयित्वा
(वै. म. र. । पटल ३) य: कदलीकन्दममन्दमत्ति । श्वासायासविनाशार्थमाशयेत् कदलीफलम् । सधः पतन्ति कृमयः समग्रा
शृतं मूत्रेऽथवा भृष्टमथवाऽङ्गारपाचितम् ।। यात्युप्रदन्तोदरकुक्षिपीडा ॥
केलेकी फलीको गोमूत्रमें पकाकर या अंगारों केलेकी जड़को घी और गुड़के साथ पकाकर | पर पकाकर अथवा ( भाड़में ) भूनकर सेवन खानेसे उदरकृमि शीघ्र ही निकल जाते हैं तथा करनेसे श्वास रोग नष्ट होता है। दान्त, उदर और कुक्षिकी तीब पीड़ा नष्ट हो जातीहै। (९५३८) कपित्थादिषाडवः (९५३५) कदलीफलयोगः (१) (ग. नि. । अरोचका. १३) (रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०)
पाडवश्च कपित्यानां सव्योषमधुशर्कर। योषिद्रजस्य नितरां समभिप्रवृत्ती
अरोचकेषु सर्वेषु प्रशस्तो धारितो मुखे ॥ सपिर्युतानि यदि वा कदलीफलानि ॥ कैथका गूदा, सोंठ, मिर्च, पीपल, शहद और केलेकी फली में घी मिलाकर सेवन करने से |
खांड समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर रक्तप्रवर नष्ट होता है।
मुखमें धारण करनेसे हरप्रकारकी अरुचि नष्ट होतीहै।
(९५३९) करञ्जपत्रयोगः (९५३६) कदलोफलयोगः
(यो. र. । छर्य.) (वैधामृत । वि. १०)
कोमलकरअपत्रं सलवणमम्लेन संयुक्तम् । अन्त्रेण हीनं मरिचैः सगर्भ
य: खादति दीनबदनश्छर्दिकफौ तस्य कुत्रेह ॥ रम्भाफल तनिधि सनिधाय । ____ करंजके कोमल पत्तों ( कोंपलों ) को पीसकर पातः सुभृष्टं मृदुपावकेऽद्यात
उसमें सेंधा नमक मिलाकर नोबूके रसके साथ .. श्वासान् छिनत्तीय तरून्कुठारः ।। | खानेसे छदि और कफका नाश होता है।
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