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रसप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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(९५२२) कुष्ठारिरसः (१) गुंजा ( चौंटली ) के तेल और बछनागके तेल में __ (र. का. धे. । कुष्ठा.)
पृथक् पृथक् १-१ मास लोहपात्रमें स्वेदित करें ।
| तदनन्तर समान भाग गंधक मिलाकर कज्जली रसगन्धकतालानि पञ्चविंशतिभागतः। बनावें और उसे आतशी शीशी में भरकर २५ पहर प्रत्येकं स्याद्दशगुणं तानं तन्मर्दयेत्त्यहम् ॥ बालुकायन्त्र में पाक करें। स्नुहीक्षीरेण भल्लाततैले तु दिनसप्तकम् ।। इसके सेवन से समस्त कुष्ठ और दद नष्ट पश्चषष्टिकयामांस्तु कवचीयन्त्रगं पचेत् ॥ हो जाते हैं । रसोऽयं सर्वकुष्ठन एकगुजाप्रमाणतः॥ (९५२४) कुष्माण्डखण्डलेहः शुद्ध पारद, गंधक और हरताल २५-२५ |
(र. र. स. । उ. अ. १८) भाग तथा ताम्र भस्म १० भाग लेकर सबको कुष्माण्डोत्थरसस्य सत्पलशतं तुल्यं गवां एकत्र खरल करें और बारीक र्ण हो जाने पर
क्षीरक ३ दिन स्नुही ( थूहर-सेंड ) के दूधमें और फिर धात्रीचूर्णपलाष्टकं लघु पद्यावत्भवेत्पिण्डितम्। सात दिन भिलावेके तेलमें खरल करके आतशी | धात्रीतुल्यसित पलाधेममृतं तल्लेहर्क लेहयेशीशीमें भरकर ६५ पहर बालुकायन्त्रमें पाक करें। ख्यातं कुष्माण्डखण्डं क्षपयति । मात्रा-१ रत्ती।
नितरामम्लपित्तं समग्रम् ॥ यह रस समस्त प्रकारके कुष्ठोंको नष्ट करताहै।
भूरे कुम्हड़े (पेठे ) का रस १२॥ सेर
| गायका दूध १२॥ सेर और आमलेका पूर्ण ४० (९५२३) कुष्ठारिरसः (२) तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्द,ग्नि पर - (र. का. धे. । कुष्ठा.) पकावें । जब वह गाढ़ा होने लगे तो ४० तोले
खांड मिला दें और पाक तैयार होने पर उसमें २॥ शुद्धसूत चित्रकस्य रसेसि विमर्दितम् ।
तोले रस सिन्दूर मिलाकर ठंडा करके सुरक्षित रखें। रसोनद्रवतस्तद्वत्तले रेतैः पृथक पुनः ॥
इसके सेवनसे अम्लपित्त रोग नट होता है। फटभीर्तकौन्तीनां गुञ्जानां विषतस्तथा । मासिकं स्वेदयेल्लौहे ततो गन्धेन कज्जलीम् ।।
( मात्रा-३ तोले ।) कृत्वा ततः काचकूप्यां पञ्चविंशतियामकम् । (९५२५) कुसुमायुधरसः पाचितोऽयं सर्वकुष्ठदद्रुघ्नः परिकीर्तितः ॥
( र. र. स. । उ. अ. २७) ___ शुद्ध पारेको १-१ मास चीते के रस और सूतस्य द्विपलं चतुष्पलग्मोन ( ल्हसन ) के रसमें खरल करें और फिर | मितो गन्धो मृतं काश्चनं उसे मालकंगनीके तेल, धतूरके तेल, रेणुकाके तेल, पादन्यूनपलं सुवर्णविमलाताप्यं रसेनोन्मितम् ।
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