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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसंपकरणम् ] परिशिष्ट ६०३ कस्तूरीं वै पूर्वचूर्णात्पदंश मात्रा-१ निष्क । (व्यवहारिक मात्रा___ कार्या सर्वैः शर्करा वै समा च । | २-३ रत्ती ।) भक्षेचैनं निष्कमात्र प्रयत्ना. अनुपान-गोदुग्ध । गोक्षीरं वै चानुपाने विधेयम् ॥ इसके सेवन काल में मधुर आहार करना और मिष्टाहारं सेवयेञ्चैव नाम्ल अम्ल पदार्थों से परहेज़ करना चाहिये। इसके सेवनसे तेज ( कान्ति ) बल और मोजस्तेजो वर्धते वै बलं च। स्त्रियोंका सौन्दर्य बढ़ता है। इसे सेवन करने वाले सौन्दर्य वै जायते सुन्दरीणां पुरुषों का वीर्य स्त्री समागम करने पर भी क्षीण वृद्धिः कामे नैव हानिश्च वोर्थे ॥ नहीं होता । यह एक उत्तम वृष्य योग है। तस्मात्सेव्यः कामदेवो रसोऽयं (९४८९) कामदेवो रसः (२) वृष्येषूक्तो योग एषो वरिष्ठः ॥ ( वृ. यो. त. 1 त. १४७) चांदी भस्म, हीरा भस्म, स्वर्ण भस्म, ताम्र- | तारं हिङ्गुलसीसकाभ्रभस्म, शुद्ध पारद, लोह भस्म और शुद्ध गंधक २-२ | सहितं लोहं च वर्ष तथा, तोले लेकर एकत्र खरल करके कजली बनावें | वृद्धाशे रसभस्मना वि. और उसे १ पहर घृतकुमारी के रसमें घोट कर | चिनुयात् सवे च खल्वे शुभे । सुखाकर आतशी शीशीमें भर दें एवं इसे डाट | मोन्मत्तजयारसेन लगाकर मुंह पर ( मिट्टी मिले हुवे ) सेंधा नमकसे मुसलीनोरेण तत्सप्तधा, मुद्रा करके सुखाकर १ दिन बालुका यन्त्रमें पकावें। | सिद्धोऽयं किल कामदेव. तदनन्तर उसके स्वांग शीतल होने पर औषधको रसराड राज्ञां भवेद्वल्लभः ।। निकालकर चूर्ण कर लें और उसे आकके दूध, | वल्लैकपमितोऽनुपानकासकी जड़के रस या क्वाथ, कमलकन्दके रस, | सहितः सर्वानादानाशयेत् मूसलीके रस, गोखरुके रस, काकोलीके रस, अस- | स्तम्भे निस्तुषभृष्टचाणकगंधके रस, शतावरके रस और जवासेके रसकी जयाजातीसिताज्यैर्युतः। पृथक् पृथक ३-३ भावना दें। तत्पश्चात् सोंठ, | पुष्टौ साज्यसिताविदारिमिर्च, पीपल, कपूर, केसर, इलायची, लौंग और मुसलीयुक्तः प्रभाते लिहेकस्तूरी समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर खरल | | स्त्रीणां यौवनदर्पगर्वितकरके बारीक चूर्ण बनावें और पूर्वोक्त तैयार रसमें शतानां द्रावणे विक्रमः ।। उसका छठा भाग यह चूर्ण मिलाकर इस सम्पूर्ण चांदी भस्म १ भाग, शुद्ध हिंगुल २ भाग, औषधके बराबर खांड मिला दें। । सीसा भस्म ३ भाग, अभ्रक भस्म ४ भाग, लोह For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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