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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८८ www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः (९४५०) केशराद्यञ्जनम् ( रा. मा. 1 बालरोगा. ३१ ) केशरदावलाक्षासुवर्णगैरिक शिलाकृमिघ्नकृतम् । सकलनयनामयनं बालानामञ्जनं कथितम् ॥ और फिर उसके छिलके अलग करके बारीक पीस कर उसमें सेंधा नमक, बोल और हल्दी का चूर्ण ( प्रत्येक उसके बराबर ) मिलाकर अच्छी तरह खरल करके सुरमा सा बारीक बना ले (९४५२) कौलीतिकावर्तिः I (ग. नि. । नेत्ररोगा . ) इसे रातको आंखमें भरनेसे ३ दिनमें रक्तज पलानि विंशतिं दाय मूलतः सम्प्रकल्पयेत् । नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है । जले च षोडशगुणे रात्रिमेकां निधापयेत् ॥ मृदाant क्वाथयेत चतुर्थीशावशेषितम् । निःस्त्राभ्य क्वाथयेभूयस्त्वजाक्षीरेण संयुतम् ॥ पादिकेन भिषग्दद्यादव हत्यमागतम् | अदग्धं तु तं कल्कं छायायां परिशोषयेत् ॥ कौलीतिका वर्तिरियं सर्वनेत्ररुजापहा । सर्वाभिष्यन्दशमनी स्वयं प्रोक्ता पिनाकिना । केसर, दारूहल्दी, लाख, सोनागेरु, मनसिल और बायबिडंग; इनके समान भाग मिलित चूर्णको खरल करके अंजन बनावें । | यह अञ्जन बालकों के समस्त नेत्ररोगों को है । (९४५१) कोकिलागुटी 1 ( ग. नि. । नेत्ररोगा. ३ ) व्योपायचूर्णसिन्धूत्यत्रिफलाञ्जनसंस्कृता । गुटिका जलपिष्टे कोकिला तिमिरापहा ।। सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, लोहचूर्ण, सैंधा नमक, हर्र, बहेड़ा, आमला, और सुरमा, इनके समान भाग मिलित चूर्णको पानीमें पीस कर गुटिका बनावें । [ ककारादि इसे आंख में लगानेसे तिमिर रोग न होता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० सोले दारूहल्दी की जड़ को कूट कर १६ गुने (३२ गुने) पानी में एक रात भिगोने के पश्चात् मन्दाग्नि पर पकावें । जब चतुर्थांश पानी शेष रह जाए तो उसे छानकर उसमें उसका चतुथींश बकरीका दूध मिला कर पुनः पकावें और जब अवलेह के समान गाढ़ा हो जाय तो वर्तियां बना कर छाया में सुखा लें। पकाते समय इस बात का ध्यान रक्खें कि औषध जल न जाए । इसे आंख में लगाने से समस्त प्रकार के नेत्राभिष्यन्द नष्ट होते हैं । यह बर्ति स्वयं भगवान शंकर द्वारा आविष्कृत है । इति ककाराद्यञ्जनप्रकरणम् 1*& For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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