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लेपपकरणम्
परिशिष्ट
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बच्चा नष्ट हो जाने पर स्त्रीके स्तनों में दूध | मण्डलानां च यत्स्थान प्रोञ्छयित्वा प्रलेपयेत् । एकत्रित होकर पीड़ा करने लगे तो कुमारी (ग्वार ततः समुद्भवन्त्यङ्गे विस्फोटाश्चातिदारुणा ।। पाठ। ) की जड़ और हल्दी के चूर्णको एकत्र पूर्व भवन्ति ते रक्ता पश्चात कृष्णा भवन्ति हि पीसकर लेप करना चाहिये । इससे पीड़ा शीघ्र ही अल्पैरेव दिनैः पश्चात्माक्तनाथं भविष्यति ।। शान्त हो जाती है।
___ कनेर, हल्दी, धतूरा, लाल अपामार्ग, कलि. अथवा इन्द्रायण की जड़ पानीमें पीसकर यारी और सज्जीखार समान भाग लेकर सबको लेप करनेसे भी लाभ होता है।
बारीक पीसकर ( ८ गुने ) गोमूत्रमें पाई और (९४१५) कुलत्थादिलेपः गाढ़ा होने पर ठंडा करके सुरक्षित रक्खें । (वृ. मा. ; यो. र. ; ग. नि. । ज्वरा. ; यो. । मण्डलकुष्ठ के स्थान पर पछने लगा कर यह त. । त. २० ; भा. प्र.। म. ख. २ ज्वरा.) लेप लगानेसे उस स्थान पर भयंकर विस्फोट कुलत्यः कट्फलं शुण्ठी कारवी च समांशकैः ।। ( फफोले ) उत्पन्न हो जाते हैं । पहिले तो वे मखोष्णैर्लेपनं कार्य कर्णमले महर्महः॥ लाल होते हैं और फिर काले हो जाते हैं तथा
कुलथी, कायफल, सोंठ और कलौंजी समान थोड़े दिनों में त्वचाका रंग अन्य स्वस्थ स्थानके भाग लेकर बारीक पीस कर मन्दोष्ण करके बारबार
समान हो जाता है। लेप करनेसे कर्णमूल नष्ट हो जाता है ।
(९४१८) कुष्ठहरलेपः (२) (९४१६) कुलीरशृङ्ग यादिलेपः
(र. चि. म. । स्त. ४) (ग. नि. । अझे. ४)
| सैन्धवं रविदुग्धेन मेलयित्वाऽय मण्डलम् । कुलीरङ्गी हस्त्यस्थि वचा लाललिका शुभा। मोञ्छयित्वा प्रलेपोयं नाशयेत्सकलं गदम् ॥ हिङ्गु कुष्ठं च तुत्यं च बिल्वं भल्लातकानि च ॥ सेंधा नमकके चूर्णको आकके दूधमें घोट कर अर्शसां पातनो लेपः सप्तरात्रात्पयोजितः ॥ लेप करने से मण्डल कुष्ठ नष्ट हो जाता है । कुष्ठ ___ काकड़ासिंगी, हाथीकी हड्डी, बच, कलियारी,
स्थान पर लेप लगानेसे पहिले पछने लगाने चाहिये। होंग, कूर, नीलाथोथा, बेलकी छाल और भिलावा; । (९४१९) कुष्ठादिलेपः (१) सब का चूर्ण समान भाग लेकर पानीके साथ पीस (रा. मा. । शिरोरोगा.) कर सात दिन लेप करनेसे अर्शके मस्से गिर जाते हैं। कुष्ठं समीरणरिपोर्जटया समेत(९४१७) कुष्ठहरलेपः (१)
मत्यम्लकाधिकयुतं परिपेष्य तेन । (र. चि. म. । स्त. ४)
लिम्पेच्छिरोर्तिशमनाय शिरोऽथ वाऽऽरअश्वहा रजनी हेम प्रत्यकपुष्पी च लागली। नालपपिटतरुणै रुबुकस्य मूलैः ।। स्वर्जीक्षारं समं नीत्वा गोजलेन प्रपच्यते ॥ । कूठ और अरण्डमूल को अत्यन्त खट्टी कांजी
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