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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ककारादि (मात्रा-५ तोला | व्य. मा. २-२॥ | क्षत, क्षय, गुल्म, ग्रहणीरोग, अर्श मूत्रकृच्छ, तोले ) अश्मरि, प्रमेह, शोथ और अतिसार का नाश होता इसके सेवनसे कास श्वास, हृद्रोग, पाण्डु, | तथा बल बढ़ता है । यह मल शाधक भी है। इति ककाराघासवारिष्टप्रकरणम् अथ ककारादिलेपप्रकरणम् (९३७९) कटुकालाब्वादिलेपः ___ इसका कुष्ठ पर लेप करनेसे सफेद कुष्ठ नष्ट हो जाता है। (वं. से. । कुष्ठा.) (९३८०) कटफलादिलेपः (१) क्टुकालाचुसव्योपहिसाहयमारकाः। (व. से. । व्रणा.) कुष्ठं वल्गुजभल्लातस्नुहीमूलानि सर्वपाः ।। कदफलदाडिमरजनीप्रियङ्गुफलताम्रपुष्पिकाविस्वकारिष्टपीलूनां पत्राण्यारमधस्य च । पुष्पैः। त्रिफलामुस्तजीमूतविशाला मूत्रपाचितः ।। | धात्रीरससम्पिष्टैर्दुष्टत्रणरोपणः फल्कः ॥ गोमजावाजमूत्राणामाढकं त्वाढक परे । | कायफल, अनारकी छाल, हल्दी, फूलप्रिया, स्नुपकक्षारकुडवं तेलं युक्त्या पदापयेत् ॥ हरी, बहेडा, आमला और धायके फूल, समान भाग पचेदानीप्रलेपन्तु घृष्ट्वा कुष्ठानि लेपयेत् । लेकर बारीक चूर्ण बनावें। इसे आमले के रसमें वित्राणि द्विष्पलिप्तानि यान्ति नाशमशेषतः ॥ पीसकर लेप करनेसे दुष्ट व्रण भर जाता है। कड़वी तूंबी, सोंठ, मिर्च, पीपल, जटामांसी, ___(९३८१) कट्फलादिलेपः (२) आककी जड़, कनेर, कूठ, बाबची, भिलावा, स्नुही (वैद्यामृत) (से हुंड-थूहर)की जड़, सरसों, बेलके पत्ते, नीमके शान्ते त्रिदोषे श्रतिमलजातफ्ते, पीलुके पत्ते, अमलतासके पत्ते, हरे, बहेड़ा, शोथस्य रक्तं प्रविमोचयेत्माक् । आमला, नागरमोथा, देवदाली (बिंडाल) और | पश्चान्मुहुः कटफलकृष्णजीरइन्द्रायण; समान भाग लेकर सबको अच्छी तरह विश्वाकुलित्योद्भवलेपनं स्यात् ॥ कूट लें और फिर उस चूर्णमें ८-८ सेर गोमूत्र, सन्निपात ज्वर के शान्त होने पर जो कर्णहस्तिमूत्र, घोड़ीकामूत्र और बकरीका मूत्र एवं २०- मूल में शोथ हो जाता है प्रथम उससे रक्त निकल२० तोले स्नुही का तथा आकका क्षार और तेल वावें और फिर कायफल, कालाजीरा, सोंठ और मिलाकर पकावें। जब करछी को लगने लगे तो कुलश्री; इनके समान भाग मिलित बारीक चूर्णको उतार कर ठंडा कर लें। । पानीमें पीस कर बार बार लेप लगावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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