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तैलमकरणम् ]
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परिशिष्ट
(९३६७) कुष्ठायस्नेहः ( शा. सं. । ख. २ अ. ९ )
कुणाशुण्ठीद्राक्षाल्ककषायवत् ।
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सोंठ
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साधितं तैलमाज्यं वा नस्यात्क्षवथुनाशनम् । कल्क – कूठ, बेलकी छाल, पीपल, और मुनक्का ४-४ तोले लेकर पानीके साथ बारीक पीस लें I
(९३६९) कुसुम्भाद्यं तैलम् (ग.नि. 1 तैला. २ ) कुम्भकुङ्कुमोशीरमञ्जिष्ठारक्तचन्दनैः । सिक्थसर्जरसातङ्कगुडूची] सैन्धवाम्बुदैः ॥ मूर्वाशतावरी लाक्षामधुकैश्च पलांशकैः । चतुर्गुणेन पयसा पचेत्तैलाढकं भिषक् ॥ अर्दितं कर्णशूलं च शिरःशूलं च दारुणम् । गृध्रसीं वातरक्तं च पक्षाघातं व्यपोहति ॥ तद्धस्तिषु च पानेषु नस्ये च कर्णपूरणे । अभ्यङ्गे च शिरोरोगे तैलं विद्याद्यथाऽमृतम् ॥ पाणिपादांसद हेषु गुदयोनिरुजातु च । सुप्तिवातेऽस्थिभङ्गे च देवदेवेन पूजितम् ।। कल्क - कुसुम्भ (कसुम्भा - आल), केसर,
रोगका नाश होता है ।
इसकी नस्य लेनेसे क्षवथु ( छींक आना) खस, मजीठ, लाल चन्दन, मोम, राल, कूठ, गिलोय, धा नमक, नागरमोथा, मूर्वा, शतावर, लाख और मुलैठी ५-५ तोले लेकर पीसने योग्य चीजों को पानी के साथ बारीक पीस लें ।
क्वाथ———कल्क की चीजें समान भाग मिलित ४ सेर लेकर ३२ सेर पानीमें पकावें और ८ सेर रहने पर छान लें।
(९३६८) कुष्ठारितैलम्
( र. र. स. । उ. अ. २० ) नारिकेरं हरिद्रे द्वे बाकुची वचया सह । अभृङ्गकमला शाककाएं च काञ्चनम् ॥ एतानि समभागानि तैलं पातालयन्त्रतः । सङ्ग्रह्य लेपयेत्तेन कुष्ठाष्टादशनाशनम् ॥
२ सेर तेल या घी में यह क्वाथ और कल्क मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाए तो स्नेह को छान लें।
नारियल ( खोपरा ), हल्दी, दारूहल्दी बाबची, बच, बहेड़ा, भंगरा, भिलावा, सागौन का का और धतूरा समान भाग लेकर पातालयन्त्रसे तेल निकालें ।
इसे लगाने से १८ प्रकारके कुष्ट नष्ट होते हैं।
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८ सेर तेल में यह कल्क और ३२ सेर दूध मिलाकर पकावें । जब दूध जल जाए तो तेलको छान लें।
यह तेल अर्दित, कर्णशूल, दारुण शिरशूल, गृध्रसी, वातरक्त, पक्षाघात, हाथ पैर और कन्धोंकी दाह तथा योनि और गुदाकी पीड़ा एवं सुप्तिवात तथा अस्थिभंगको नष्ट करता है ।
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इसे आवश्यक्तानुसार बस्ति, अभ्यङ्ग, पान, नस्य और कर्णपूरण आदि द्वारा प्रयुक्त करना चाहिये । शिरशूल मालिश करने से यह अमृत के समान गुण करता है ।