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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सेलमकरणम् ] कल्क ---- कसीस, दन्तीमूल, सैंधा नमक कनेरकी जड़ और चीतामूल २-२ तोले लेकर पानी के साथ बारीक पीस लें । १ सेर तेलमें यह कल्क और ४ सेर आकका दूध मिलाकर पकावें । जब दूध जल जाए तो तेलको छान लें। र. र. व. से । नाड़ीबणा. ) ; परिशिष्ट मिलाकर पकावें । जब क्वाथ जल जाए तो तेल को छान लें । इसे लगाने से अर्श मस्से नष्ट होते हैं। (९३६३) कुम्भीकाद्यं तैलम् (भै. र. ; भा. प्र.; वृ. मा. ; च. द. ; धन्व. ; कुम्भीकखर्जूरकपित्थ बिल्ववनस्पतीनान्तु शलादुवगैः । कृत्वा कषायं विपचेतु तैल मावाप्य सुस्ता सरलयितुम् ॥ सौगन्धिका मोचरसाहिपुष्पा लोधाणि वा खलु घातकीञ्च । एतेन शल्यप्रभवा हि नाडी रोहेद् व्रणो वै सुखमाशु चैव Il क्वाथ - कुम्भी ( सुलतान चम्पा), खजूर, एवं कैथ और जेल के कच्चे फल समान भाग मिलित २ सेर लेकर सबको एकत्र कूटकर १६ सेर पानी में पकावें और ४ सेर रहने पर छान लें। कल्क -- नागरमोथा, सरल काष्ठ, फूलप्रियंगु, सुगन्धतृण (अथवा अनन्त मूल), मोचरस, नागकेसर, लोध और धायके फूल समान भाग मिलित १० तोले लेकर पानी के साथ बारीक पीस लें । १ सेर तेलमें उपरोक्त कल्क और क्वाथ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६७ इसे लगाने से शल्य - जनित नाडी व्रण भर जाता है । (९३६४) कुष्ठकालानलतैलम् (१) (ग. नि. । तैला. २ ) क्षारद्वयं कटुत्रीणि पञ्चैव लवणानि च । वचा कुठे हरिद्रे द्वे विडङ्गं चित्रकं विषम् ॥ हरितालं शिलागन्धं सिन्दूरं तुत्थखर्परम् । रामटं च रसोनं च मदनं च रसाञ्जनम् || एतत्सवं समांशं च स्तुत्यर्कपयसा प्लुतम् । षड्गुणं सार्षपं तैलं तैलान्मूत्रं चतुर्गुणम ।। सर्वं मन्दानले पक्वं ग्राह्यं तैलाव शेषकपू । हन्त्यष्टादश कुष्ठानि मांसमेदोगतानि च ॥ दुष्टणानि शातानि जीर्णनाडीव्रणानि च । हन्ति श्वित्रसाध्यं च ददुपामाविचर्चिकाः एतत्तैलं सदाऽभ्यङ्गात्कुष्टव्याधिहरं नृणाम् ॥ For Private And Personal Use Only कल्क --- जवाखार, सज्जीखार, सोंठ, मिर्च, पीपल, सेंधा नमक, सञ्चल ( कालानमक ), काच लवण, विड लवण, सामुद्र लवण, बच, कूठ, हल्दी, दारूहल्दी, बायबिडंग, चीतामूल, बछनाग, हरताल, मनसिल, गंधक, सिन्दूर, नीलाथोथा, खपरिया, हींग, ल्हसन, मैनफल और रसोत समान भाग मिलिट २० तोले लेकर एकत्र पीस लें और उसमें थूहर तथा आकका दूध मिलाकर लुगदी बना लें । तदनन्तर ३ सेर सरसों के तेल में यह कल्क और १२ सेर गोमूत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो तेलको छान लें।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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