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तैलपकरणम्
परिशिष्ट
५६५
( कपूर, तेल छानने के पश्चात् मिलाना यह तैल ( पीने, लगाने और नस्य द्वारा चाहिये ।)
| प्रयुक्त करने से ) अपची (गंडमाला भेद ) को (९३५३) काकजङ्घातैलम्
नष्ट करता है। ( ग. नि. | कर्णरोगा. ३)
(९३५६) काञ्जिकादितैलम् समूलकाकजनया रसस्तैलेन पाचितः ।
(वै. म. र. । पट. १२) तेन पूरितकर्णस्य बाधिर्य शाम्यति ध्रुवम्॥ धान्याम्लमिश्रं चिश्चाम्लं पटुतैलमिदं शृतम् ।
मूलसहित काकजंघाका रस और तेल एकत्र | लिम्पेद्वाताम्रनाशाय मृगनाभिमथापि वा ॥ मिलाकर पकाकर कानमें डालनेसे बधिरता अवश्य कांजी ४ सेर, तेल १ सेर तथा इमलीका सत नष्ट हो जाती है।
(टाटरी) और सेंधा नमक ५-५ तोले लेकर सबको
एकत्र मिलाकर पकावें । जब कांजी जल जाए तो (९३५४) काकमाच्यादितैलम्
तेल को छान लें। ( र. र रसा. खं । उपदेश ५) काफमाचीयबीजानि समाः कृष्णतिलास्तथा।।
इसे लगानेसे वातरक्तका नाश होता है। तत्तैलं ग्राहयेयन्त्रे तन्नस्यं केशरजनम् ॥
कस्तूरीका लेप करनेसे भी वातरक्तका नाश
| हो जाता है। मकोयके बीज और काले तिल समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर कोल्हू (घानी) में पिलवाकर
(९३५७) कारस्करादितैलम् तेल निकलवावें।
(वै. म. र. । पटल १२) इसकी नस्य लेनेसे बाल काले हो जाते हैं। कारस्करस्याङ्घिचतुःपलेन (९३५५) काकादन्यादितैलम्
क्षीराढके कल्फितलोडितेन । (व. से. । गण्डमाला.) प्रस्थं पचेत्तैलमपाकरोति काकादनीशिफाकल्कैनिर्गुण्डयाः स्वरसैः शृतम् ।
तद्वातरक्तं न तु तुल्यमस्य ।। आरनालैश्च कटुकं तैलं स्यादपचीहरम् ॥
२० तोले कुचलेकी जड़को पीसकर २ सेर
तेलमें मिलावें और उसमें ८ सेर गोदुग्ध मिलाकर चौटलो ( गुञ्जा ) की जड़का कल्क १०
दूध जलने तक पकावं। तोले, संभालूका रस २ सेर, कांजी २ सेर और सरसोंका तेल १ सेर लेकर सबको एकत्र मिला यह तैल वातरक्तको नष्ट करता है । वातरक्त कर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको | के लिये इससे उत्तम अन्य कोई प्रयोग नहीं है। छान लें।
| ( इसे रोग स्थान पर लगाना चाहिये ।)
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