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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ककारादि
इसे कैथके रस या बिजौ रे नीबूके रसमें पीस (९२९५) कोलम जादिचूर्णम् कर शहदमें मिलाकर पीनेसे छर्दिका नाश होता है। (यो. र. । मूॉ. ; ग. नि. । मूर्छा. १६) (मात्रा-६ माशे।)
| कोलमज्जोषणोशीरकेसरं शीतवारिणा । (९२९३) कृष्णादिचूर्णम् (२) पीतं मूछां जयेल्लीढा कृष्णा वा मधुसंयुता ॥ (ग. नि. । अरोचका. १३ : वृ. मा. । अरोचका.) बेरकी गुठलीकी मोंगी, काली मिर्च, खस और वाते बचाम्बुवमनं कृतवान् पिबेत्तु नागकेसर समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । स्नेहैः मुराभिरथवोष्णजलेन चूर्णम् ।
इसे शीतल जलके साथ पीने से या पीपलका कृष्णाविडायचभस्महरेणुभार्गी
चूर्ण शहद के साथ चाटनेसे मूर्छा नष्ट होती है । रास्नैलहिङ्गुलवणोत्तमनागराणाम् ।। (मात्रा-२-३ माशा।) पीपल, बायबिडंग, जौकी भस्म, रेणुका,
(९२९६) कोलास्थिचूर्णम् भरंगी, रास्ना, इलायची, हींग, सेंधा नमक और
(सु. सं. । उ. त. अ. ५०) सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
कोलास्थिमज्जाजनलाजचूर्णम् । - वातज अरुचिमें बचके क्वाथसे वमन कराने
हिक्कां निहन्यान्मधुना च लीढम् ॥ के पश्चात् यह चूर्ण स्नेह ( घृत या तैल ), सुरा
बेरकी गुठली की मांगी, सुरमा और धानकी या उष्ण जलके साथ सेवन कराना चाहिये। खील समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । (मात्रा-१॥-२ माशा ।)
इसे शहद के साथ चाटने से हिचकी का
। नाश होता है। (९२९४) कृष्णादियोगः
(मात्रा--२-३ माशे । ) (ग. नि. । मूढगर्भा.)
(९२९७) क्रव्यादिकल्पः कृष्णा तन्मूलशुण्ठथैलाहिङ्गभार्गी: मदीप्यकाः। (वै. र. । अग्निमांद्या. ) वचामतिविषां रास्नां चव्यं सञ्चूर्ण्य पाययेत् ।। एलालबमरिचकृष्णाशुक्तिसमन्वितम् । स्नेहन दोषशान्त्यर्थ वेदनोपशमाय च। चुक्रनागरसिन्धुत्थमृषकपलपञ्चकम् ।। क्वार्थ चैषां तथा कल्कं चूणे वा घृतभर्जितम् ।। एषां चूर्ण वस्त्रपूतं कन्यादानातिरिच्यते ॥
पीपल, पीपलामूल, सोंठ, इलायची, हींग, इलायची, लौंग, काली मिर्च और पीपल, भरंगी, अजवायन, बच, अतीस, रास्ना और चव २॥२॥ तोले तथा अमलबेत, सेठ, सेंधा नमक समान भाग लेकर चूर्ण बन वें तथा उसे घीमें सेक लें। और ऊष (रेह मिट्टी ) २५-२५ तोले लेकर
इसे घीके साथ खिलानेसे अथवा इन्हीं द्रव्यों । वस्त्रपूत चूर्ण बनावें । का क्वाथ या कल्क देनेसे मूढ गर्भ जनित विकार इसे सेवन करनेसे क्षुधा अत्यन्त बढ़ जाती है। और पीडाका नाश होता है।
(मात्रा---१ माशा।) इति ककारादिचूर्ण प्रकरणम्
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