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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ककारादि
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के रसके साथ ) बारीक पीस लें। इसे पीने और | (९२८५) कुष्ठादिचूर्णम् (४) इसका लेप करनेसे स्नायुक (नहरवा) नष्ट होजाता है । ( रा. मा. ! रसा. वाजी. ३२ )
(९२८२) कुष्ठादिचूर्णम् (१) कुष्ठं मुरा केसरमित्यमूनि
(व. से. । अतिसारा.) __श्लक्ष्णानि सञ्चूर्ण्य घृतान्वितानि । कुष्ठं पाठा वचा मुस्तं चित्रकं कदुराहिणी।। यो लेदि नित्यं मधुसंयुतानि पीतमुष्णाम्बुना चूर्ण श्लेष्मातीसारनाशनम् !! । स स्यात्सुगन्धिः सुभगश्च लोके ॥
कूठ, पाठा, बच, नागरमोथा, चीता और ____ कुठ, मुरमुकी और केसर समान भाम कुटकी समान भाग लेकर पूर्ण बनावें । लेकर चूर्ण बनावें।
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे कफाति- इसे घो और शहदमें मिलाकर सेवन करने से सार नष्ट होता है।
शरीरसे सुगन्धि आने लगती है और सौन्दर्य बढ़ता है। (मात्रा-२-३ माशे।)
(९२८६) कुष्ठादियोगः (९२८३) कुष्ठादिचूर्णम् (२
( यो. र. । कृत्रिम बपा.) (ग. नि. । कासा. १०)
कुठं वचा मदनकोशवतीफलेन कुष्ठ तामलकी भार्गी शो क्षारौ हरीतकी । ___ संयोजितं तदिति चूर्णमिदं चतुर्णाम् । कोल चोष्णाम्भसा चूणे
गोमूत्रपीतमखिलाखुविषं निहन्ति श्लेष्मकासान्वितः पिबेत् ॥
कोशातकीक्वथनमापिवतोऽथ वाऽपि ॥ कूठ, भुईआमला, भरंगी कचूर, जवाखार, | कुठ, बच, मैनफल और तुरई (कड़वी तोरी) सज्जीखार और हर समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। का फल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ! ____ इसे उष्ण जलके साथ पीनेसे कफज कासका इसे गोमूत्र के साथ पीनेसे चूहेका विष नाश होता है।
नष्ट होता है। मात्रा-७|| माशे।
___ अथवा तोरी ( कड़वी तोर के कलका काथ (९२८४) कुष्ठादिचूर्णम् (३) पानसे भी चूहेका विष न होता है । ( भा. प्र. | म. खं. २ ; यो. र. । तालुोगा.) (९२८७) कुष्ठाय चूर्णम् कुष्ठोषणवचासिन्धुकणापाठाप्लवैः सह ।।
(ग. नि. : उदरा. ३२) ससौभिषजा कार्य गलशुण्डी प्रघर्षणम् ॥ कुष्ठं दन्ती यवक्षारः पाठा त्रिलवणं बचा। ___ कूठ, काली मिर्च, बत्र, सेंधा नमक, पीपल.| अजाजी दीप्यको हिङ्गु स्वर्जिका चव्यचित्रकौ ॥ पाठा और केवटी मोथा समान भाग लेकर | शुण्ठी चोष्णाम्भसा पीतं वातोदररु जापहम् ।। चूर्ण बनावें ।
कूर, दन्जीमूल, जवाखार, पाठा, सेंधा नमक, इसे शहद में मिलाकर गागिट पर मलना चाहिये। काला नमक - संचल ), बिडलवण, बच, जीरा,
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