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कषायपकरणम् ]
परिशिष्ट
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(९२१८) किरातादिकाथः (४) (वृहद) | (९२२१) कुटजादिक्वाथः (२) (भै. र. । ज्वरा. ; हा. सं. । स्था. ३ अ. २) ( भै. र. । अतीसारा. ; वृ. मा. ; ग. नि.) किराततिक्तामलकशटीनां
कुटजातिविषां मुस्तं हरिद्रापणिनीद्वयम् । द्राक्षोषणानागरकामृतानाम् ।
सक्षौद्रशर्करं शस्तं पित्त लेष्मातिसारिणाम् ।। क्वाथः सुशीतो गुडसंयुतः स्यात्
____ कुड़ेकी छाल, अतीस, नागरमोथा, हल्दी, सपित्तवातज्वरनाशहेतुः ॥
शालपर्णी और पृष्ठपर्णी समान भाग लेकर चिरायता, आमला, कचूर, द्राक्षा, कालीमिर्च, क्वाथ बनावें ।
इसमें शहद और खांड मिलाकर पीनेसे पित्तसोंठ और गिलोय समान भाग लेकर क्वाथ बनावें।
| कफज अतिसार नष्ट होता है। इसे ठंडा करके गुड़ मिलाकर पीनेसे वातपित्त ज्वर
(कफातिसारमें शहद और पिसातिसार में नष्ट होता है।
खांड मिलानी चाहिये । ) (९२२९) किरातादिपाचनकषायः
(९२२२) कुटजादिक्वाथ: (३) (ग. नि. । ज्वरा. १)
| (भै. र. । अतिसारा. ; वृ. मा. ; ग. नि. ; व. से.) किराततिक्तकं क्षौद्रं हीवेरामलकीफलम् ।। कुटमत्वक्फलं मुस्तं क्वाययित्वा पिज्जलम् । ज्वरनं तत्पिबेच्छीतं पाचनं पैत्तिके ज्वरे॥ अतीसारं जयेदाशु शर्करामधुयोजितम् ।।
चिरायता, सुगंधबाला और आमला समान । कुड़ेकी छाल, इन्द्रजौ और नागरमोथा समान भाग लेकर शीतकषाय बनावें । इसमें शहद मिला| भाग लेकर क्वाथ बनावें । कर पीनेसे पित्तज्वर में दोषोंका पाचन होता है। इसमें शहद और खांड मिलाकर पीनेसे (९२२०) कुटजादिक्वाथः (१) अतिसार शीघ्रही नष्ट हो जाता है। (वृ. मा. । प्रमेहा.)
(९२२३) कुशमूलादिक्वायः कुटजासनदाय॑न्दफलत्रयभवोऽथयो ।
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ३) गृहच्याः स्वरसः पेयो मधुना सर्वमेहनुत् ॥ कुशकाशेक्षुमूलानां शालीनलदवजुलैः।
कुड़े की छाल, असन वृक्षकी छाल, दारुहल्दी, | मूलानां क्वाथमाहृत्य शस्तं पित्तातिसारिणाम ॥ नागरमोथा, हर्र, बहेड़ा और आमला समान भाग
____ कुशमूल, कासकी जड़, ईखको जड़, शाली लेकर क्वाथ बनावें ।
चावलोंकी जड़, खस और बेतकी जड़ समान भाग यह क्वाथ या शहद मिलाकर गिलोयका रस लेकर क्वाथ बनावें। यह क्वाथ पित्तातिसारको पीनेसे समस्त प्रकारके प्रमेह नष्ट होते हैं। नष्ट करता है।
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