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मिश्रप्रकरणम्
परिशिष्ट
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अथ औकारादिमिश्रप्रकरणम् (९१८५) औष्ट्रक्षीरयोगः । ऊंटनी का दूध पीनेसे 4 मयंकर कुष्ट भी
( ग. नि. । कुष्टा. ३६ ) नष्ट हो जाता है कि जिसमें कृमि पड़ गये हों, जातकृमीणि कुष्ठानि च्युतरोमनरखान्यपि। रोम और नरख गिर चुके हो तथा ५. "का मास अपि वा शीर्णमांसानि क्षीरमौष्ट्र पिवयेत् ॥ सड़कर बिग्वर गया हो ।
इति औकारादिमिश्रप्रकरणम्
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अथ ककारादिकषायप्रकरणम् (९१८६) कटङ्कटेयाँदिक्वाथः (१) दारहन्दी, रसौत, नागरमोथा, बासा, चिग़(व. से. । प्रमेहा. )
यता, भिलावा और तिल समान भाग लेकर क्वाथ कटङ्कटेरीमधुकत्रिफलाचित्रकैः समः। बनावें। इसमें शहद मिलाकर पीनेसे स्त्रियोंका सिदः कषायः पातव्यः प्रमेहानां विनाशनः।। अनेक प्रकारका प्रदर रोग नष्ट होता है। ____दारुहल्दी, मुलैठी, हर्र, बहेड़ा, आमला और (९१.८८) कटुकादिक्वाथः (१) चौतामूल समान भाग लेकर क्वाथ बनायें ।
( वा. भ. । चि. अ. १) यह क्वाथ प्रमेहों को नष्ट करता है। पाचयेत्कटुकां पिष्ट्वा कर्परेभिनवे शुचौ । (९१८७) कटकटेादिक्वाथः (२) निष्पीडितो घृतयुतस्तद्रसो ज्वरदाहजित् ।। (वै. जी. । वि. ३)
( ताजी-हरी ) कुटकी को पीसकर मिट्टीके कटटेरीरसजान्दवासा
शुद्ध नवीन पात्रमें रखकर स्वेदित करें और फिर भनिम्बभल्लीतिलजः कषायः । । उसे निचोड़कर रस निकालें । इसमें घी मिलाकर सौदान्वितश्चञ्चललोचनानां
पीनेसे ज्वर और दाहका नाश होता है। नानाविधानि प्रदराणि हन्यात् ।। (मात्रा--रम १ तोला, घी १ तोला ।)
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