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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलपकरणम् ] परिशिष्ट . ५१५ - - - अथ एकारादितैलप्रकरणम् (९१५६) एरण्डतैलयोगः (१) त्रिफला के क्वाथ में अण्डीका तेल मिलाकर (वै. म. र. । पटल १२) पिलाने से विरेचन होकर मल, पित्त, कफ और वायु एरण्डतैलं निर्गुण्डीस्वरसं च पृथक समम्। स्वमार्गगामी हो जाते हैं और अर्श रोग नष्ट पीत्वा कटीपदेशस्थ वातं जित्वा सुखी भवेत् ॥ हो जाता है। ____ अरण्डोका नेल और संभालुका रस समान भाग (९१६०) एरण्डतैलयोगः (५) लेकर एकत्र मिलाकर पीनेसे कटि (कमर)का वायु (वै. म. र. । पट. १६) नष्ट हो जाता है। | दुष्टवणेषु सर्वेषु युज्यादेरण्डसम्भवम् । (९१५७) एरण्डतैलयोगः (२) ____ हर प्रकारके दुष्ट व्रणोंमें एरण्डतैल प्रयुक्त ( यो. र. ; वृ. मा. । उदरा.) करना चाहिये। एरण्डतैलं दशमूलमिश्रं (इसे पिलाकर पेट साफ करना चाहिये और गोमूत्रयुक्तं त्रिफलारजो वा। यही तेल घावों पर लगाना चाहिये या इसमें कपड़ा निहन्ति वातोदरशोथशूलं | भिगोकर घाव पर रखना चाहिये।) क्वाथः समृत्री दशमलजश्च ॥ दशमूलके क्वाथमें अरण्डीका तेल मिलाकर (९१६१) एरण्डपत्रादितैलम् पीनेसे या गोमूत्रके साथ त्रिफलाका चूर्ण सेवन ( व. से. । कर्णरोगा,) करनेसे अथवा गोमूत्र में दशमूलका क्वाथ बनाकर एरण्डपत्रपुटपाकविपाचिताम्बु पीनेसे वातोदर, शोथ और शूलका नाश होता है । तुल्याईकस्य सलिलं मधुन मिश्रम् । (९१५८) एरण्डतैलयोगः (३) पक्त्वा च तैललवणेन युतं सुखोणं (वृ. यो. त. । त. ९३ ) कर्णे रुजं हरति तत्क्षणमेव दत्तम् ॥ आमवातगजेन्द्राणां शरीरवनचारिणाम् । अरण्डके पत्तोंका पुटपाक विधिसे पकाकर एक एव निहन्ताऽस्ति रुजूकस्नेहकेसरी ।। शरीररूपी वनमें विचरण करने वाले आमवात रूपी निकाला हुवा रस, अदरकका रस, मुलेठीका चूर्ण, तिलका तेल और सेंधा नमक एकत्र मिलाकर पकायें हाथीके लिये अरण्डका तेल ( कास्ट्रायल ) सिंहके समान है। और जलांश शुष्क होने पर तेलको छान लें । (९१५९) एरण्डतैलयोगः (४) । इसे मन्दोष्ण करके कानमें डालनेसे कर्णपीड़ा (ग. नि. । अर्शी. ४) | तुरन्त नष्ट हो जाती है। एरण्डतैलं त्रिफलारसेन च विशोधनम् । (तेल ५ तोले, दोनों रस २०-२० तोले, विपित्तश्लेष्मवातानुलोमनाद्गुदजापहम् ॥ मुलैठीका चूर्ण और सेंधानमक ७||-७॥ माशे । ) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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