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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् परिशिष्ट ५१३ अथ एकारादिगुटिकाप्रकरणम् (९१५२) एलीयकादिगुटिका राई, सञ्जी, सोरा, बायबिडंग, जीरा और सेंधानमक (यो. चि. म. । अ. ३) समान भाग लेकर सबके बराबर गुड़ में मिलाकर एलीयकं कणा पथ्या शुण्ठी चित्रकटङ्कणम् । गोलियां बना लें। राजिका सर्जिका सौरो विडङ्गानाजिसैन्धवम् ॥ इनके सेवन से यकृत् और प्लीहावृद्धि का गुडेन गुटिका कार्या यकृत्प्लीहविनाशिनी ॥ नाश होता है। एलवा, पीपल, हर्र, सोंठ, चीतामूल, सुहागा । (मात्रा-१ माशा । अनुपान-उष्ण जल ।) इति एकारादिगुटिकाप्रकरणम् अथ एकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् (९१५३) एरण्डादिगुग्गुलुः । मूल, चव, चीतामूल, सोंठ, खरैटीकी जड़, हर, (व. से. वातव्या.) | छोटी और बड़ी कटेली, पुनर्नवा ( बिसखपरा ) की शुक्लेरण्डस्य मूलानि युग्मं सहचरस्य च ।। जड़, अतोस, बच, असगंध, शतावर, बासा (अडूसा), मुस्ता दुरालभा दीया देवाह कदुका शठी ।। धनिया, गिलोय, बायबिडंग, अमलतासका गूदा, पञ्चकोले वला पथ्या क्षुद्रे द्वे च पुनर्नवा । गोखरु, बिधारा, हल्दी और दारुहन्दी; इनका विषोना वाजिगन्धा च शतावर्याटरूपकम् ॥ चूर्ण १-१ भाग तथा शुद्ध गूगल ३४ भाग लेकर धान्यं छिन्नरुहा चैव विडङ्गं व्याधिघातकम्। सबको एकत्र मिलाकर (आवश्यकतानुसार घी गोक्षुरं वृद्धदारु च दीप्यको निशायुग्मकम् ॥ मिलाकर ) कूटें । चतुस्त्रिंशतिको भागः पीतः कौशिकसंयुतः । ____ यह दीपन, पाचन और लघु है तथा समस्त सर्वचातविकारघ्नः पाचनो दोपनो लघुः ।। | वात विकारों एवं आमवात और शोथको नष्ट करता बामवातस्य शोथस्य स्रोतसां कफनाशनः ॥ तथा स्रोतोंमें स्थित कफको दूर करता है । ___सफेद अरण्डकी जड़, दो प्रकारके ( पोले । और काले ) पियाबांसेकी जड़, नागरमोथा, धमासा, (मात्रा-१॥-२ माशा । अनुपानअजवायन, देवदारु, कुटकी, कचूर, पीपल, पोपला. उष्ण जल । ) इति एकारादिगुग्गुलुपकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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