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गुटिकाप्रकरणम्
परिशिष्ट
५१३
अथ एकारादिगुटिकाप्रकरणम् (९१५२) एलीयकादिगुटिका राई, सञ्जी, सोरा, बायबिडंग, जीरा और सेंधानमक
(यो. चि. म. । अ. ३) समान भाग लेकर सबके बराबर गुड़ में मिलाकर एलीयकं कणा पथ्या शुण्ठी चित्रकटङ्कणम् । गोलियां बना लें। राजिका सर्जिका सौरो विडङ्गानाजिसैन्धवम् ॥ इनके सेवन से यकृत् और प्लीहावृद्धि का गुडेन गुटिका कार्या यकृत्प्लीहविनाशिनी ॥ नाश होता है। एलवा, पीपल, हर्र, सोंठ, चीतामूल, सुहागा । (मात्रा-१ माशा । अनुपान-उष्ण जल ।)
इति एकारादिगुटिकाप्रकरणम्
अथ एकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् (९१५३) एरण्डादिगुग्गुलुः । मूल, चव, चीतामूल, सोंठ, खरैटीकी जड़, हर,
(व. से. वातव्या.) | छोटी और बड़ी कटेली, पुनर्नवा ( बिसखपरा ) की शुक्लेरण्डस्य मूलानि युग्मं सहचरस्य च ।। जड़, अतोस, बच, असगंध, शतावर, बासा (अडूसा), मुस्ता दुरालभा दीया देवाह कदुका शठी ।। धनिया, गिलोय, बायबिडंग, अमलतासका गूदा, पञ्चकोले वला पथ्या क्षुद्रे द्वे च पुनर्नवा । गोखरु, बिधारा, हल्दी और दारुहन्दी; इनका विषोना वाजिगन्धा च शतावर्याटरूपकम् ॥ चूर्ण १-१ भाग तथा शुद्ध गूगल ३४ भाग लेकर धान्यं छिन्नरुहा चैव विडङ्गं व्याधिघातकम्। सबको एकत्र मिलाकर (आवश्यकतानुसार घी गोक्षुरं वृद्धदारु च दीप्यको निशायुग्मकम् ॥ मिलाकर ) कूटें । चतुस्त्रिंशतिको भागः पीतः कौशिकसंयुतः ।
____ यह दीपन, पाचन और लघु है तथा समस्त सर्वचातविकारघ्नः पाचनो दोपनो लघुः ।।
| वात विकारों एवं आमवात और शोथको नष्ट करता बामवातस्य शोथस्य स्रोतसां कफनाशनः ॥
तथा स्रोतोंमें स्थित कफको दूर करता है । ___सफेद अरण्डकी जड़, दो प्रकारके ( पोले ।
और काले ) पियाबांसेकी जड़, नागरमोथा, धमासा, (मात्रा-१॥-२ माशा । अनुपानअजवायन, देवदारु, कुटकी, कचूर, पीपल, पोपला. उष्ण जल । )
इति एकारादिगुग्गुलुपकरणम्
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