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चूर्णप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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अथ एकारादिचूर्णप्रकरणम् (९१४३) एरण्डमूलाधं चूर्णम् । के बीजों के चूर्ण को तक के साथ पीने से मूत्र
(ग. नि. । कासा. १०) कृच्छु का नाश होता है। एरण्डमूलं बृहती च वांशी
(९१४६) एलादिचूर्णम् (१) __कटुवयं कर्कटभृङ्गिका च ।
(यो. र. । प्रदग , फलत्रयं वै लवणानि पश्च
एलामंशुमती द्राक्षामुशीरं तिक्तरोहिणीम् । चूर्ण हरत्युष्णजलेन कासम् ॥
चन्दनं कृष्णलवणं सारिवालोध्रसंयुतः । अरण्डमूल, बड़ी कटेली, बंसलोचन, सोंठ, वातासम्मरशान्त्यर्थ पिबेहध्ना सहान. . मर्च, पीपल, काकड़ासिंगी, हर्र, बहेड़ा, आमला |
पित्तामुग्दरशान्त्यर्थं सक्षौद्रं ललना पिबेत् ॥ और पांचों नमक समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इलायची, शालपर्णी, द्राक्षा, खस, कुटकी, इसे उष्ण जलके साथ सेवन करने से खांसी
सफेद चन्दन, काला नमक, आरिवा और लोध नष्ट होती है।
समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । (मात्रा–२-३ माशे ।)
इसे दही के साथ पीनेसे वातज प्रदर और (९१४४) एरण्डादिकल्कः शहदके साथ पीनेसे पित्तज प्रदर नष्ट होता है । (यो. र. । अश्मर्य.)
(पात्रा-२-३ मारो ।) गन्धर्वहस्तबहतीव्याघ्रीगोक्षुरकेचरात् । (९१४७) एलादिचूर्णम् (२) मूलकल्कं पिवेद्दध्ना मधुरेणाश्मभेदनः ।
(वै. म. र. । पटल ४ ) भरण्डमूल, बड़ा कटेलो को जड़, छोटी कटेली की
एलालबाल्कलतमालदल रजो मधुविमिश्रम् । जड़, गोखरू की जड़ और तालमखानेको जड़ समान
लीढं वमि निहन्याद्रिल्यवराव्योषचूर्ण वा। भाग लेकर मीठी दही के साथ बारीक पीसकर पीनेसे |
इलायची, लौंग, दालचीनी और तेजपात समान अश्मरिका नाश ह ता है।
भाग लेकर चूर्ण बनायें । (९१४५) एलाचूर्णयोगः
इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे वमन नष्ट (यो. र. । मूत्रकृच्छ्रा.)
होती है। पिवेन्मधेन मूक्ष्मैलां धात्रीफलरसेन वा। ( मात्रा-१-१ माशा । १-१ घंटा बाद शितिवारकबीजं वा तक्रे श्लक्ष्णं च चूर्णितम् ।। दिनमें ५-६ बार ।)
छोटी इलायची के चूर्णको मद्य अथवा आम- बेलगिरी, हर, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च लेके फलके रसके साथ सेवन करने से या चांगेरी और पीपल; इनका चूर्ण भी वमनको नष्ट करता है।
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