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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् परिशिष्ट ५०६ (९१३४) उपरसशोधनम् (९१३५) उपविषशोधनम् ( यो. त. । त. १७) (रसे. सा. सं.) काष्ठं गैरिकं शङ्ख कासीसं टट्टणं तथा । अर्कसेहुण्डधत्तरलागलीकरवीरकाः । नीलाअनं शुक्तिभेदाः क्षुल्लकाः सवराटिकाः ॥ गुज़ाहिफेनावित्येताः सप्तोपविषजातयः ।। जम्बीरवारिणा स्विन्नाः धुस्तूरम्य च यदीजमन्यच्चोपविषञ्च यत् । क्षालिताः कोष्णवारिणा। तच्छोध्यं दोलिकायन्त्रे क्षीणेथ मात्रके ।। शुद्धिमायान्त्यमी योज्या आकका दृध, मेहुंड (थूहर )का दूध, धतूरा, भिषग्भिोगसिद्धये ।। कलियागेकी अड, कनेरकी जड़, गुन्ना और अफोम कंकुष्ठ, गेरु, शंख, कसीस, सुहागा, नीलांजन, ये सात उपविष हैं। शुक्तिभेद क्षुल्लक ( घोंघा ) और कौड़ी: ये उपरस । जंबीरी नीबू के रसमें ( दोलायन्त्र विधिसे ) स्वेदित । धत्तूरबीजादि उपविष दोलिकायन्त्र विधिसे करके गरम पानीसे धो डालनेसे शुद्ध हो जाते हैं। : १ पहर ) गोदुग्धगें पकानेसे शुद्ध हो जाते हैं। इति उकारादिरसप्रकरणम् अथ उकारादिमिश्रप्रकरणम् (९१३६) उच्चटादिमर्दनम् पादे स्थितं वलयरूपतयोत्तरिया (न. मृ. । त. ६) मूलं व्ययातिशयविक्लबमानमानाम् ।। कुडवैकमुच्चटाबीजान्मेषीक्षीरे चतुर्गुणे। यदि प्रसबके समय स्त्रीको अत्यन्त वेदना हो पाचयित्वा विधानेन शि ने मा विमर्दयेत् ।। रही हो और प्रसव न होता हो तो इंद्रायणकी औदण्डयं जायते शिश्ने दोपं हत्वा ह्ययोनिजम्।। जड़को पैरमें लपेट देने से मृत गर्भ भी शीघ्र ही २० तोले उटिंगणके बीजों का चूर्ण करके निकल आता है और उसके साथ ही जरायु पटल उसे ८० तोले भेड़के दृधमें पकाकर खीर सी (जेर ) भी निकल जाती है । बना लें । इसे थोड़ी थोड़ी करके शिश्न पर गर्दन (९१३८) उपोदिकादियोगः करें । इसी प्रकार १ मास तक करने से अयोनि (वै. म. र. । पट. १८) मैथुन जनित दोष नष्ट होकर शिश्न दृढ़ हो जाता है। निद्रां करोनिद्राणां प्रदोषे शिरसा धृता । (९१३७) उत्तरिणीमूलयोगः । उपोदिका करीतायाः शिफा वाऽथ धृता तथा ॥ ( रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) सायंकालको उपोदिका ( पोई ) को या कपोगर्भ विपन्नमपि पातयनि क्षणेन ताकी ज शिर पर रख कर सो रहने से अनिद्रा स्त्रीणां जरायुपटलं च पृथक्करोति। । दूर होकर नींद आ जाती है। इति उकारादिमिश्रप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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