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कषायप्रकरणम् ]
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परिशिष्ट
अथ उकारादिकषायप्रकरणम्
उ
(९१०१) उत्पलपत्रस्वरसयोगः ( वै. म. र । पट. ३ ) उत्पलपत्रस्वरसः किञ्चित्तैलेन सहापीतः । अस्थिस्रावं स्त्रीणां नाशयति नरस्य सोमरोगं च ॥ नीलोत्पल के पत्तों के रस में जरासा तेल मिलाकर पीने से स्त्रियोंका अस्थिस्राव और सोमरोग नष्ट जाता है ।
(९१०२) उशीरादिकषायः
उशीरपाठाकुटजाटरूप
( ग. नि. । ञ्चरा. १ ) उशीरयष्टीमधुनिम्बमिश्र मुस्तं हरिद्राद्वितयं पटोलम् । आरग्वधवेति कृतः कषायः
सवातपित्तज्वर जिन्मतोऽयम || खस, मुलेठी, नीम की छाल, नागरमोथा, हल्दी, दारूहल्दी, पटोल और अमलतास समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
श्रीखण्डमुस्तातिविषाविमिश्रः ।
सनागरः क्वाथवरः सुखाय
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ज्वरातिसारे मधुनान्त्रितो भवेत् ॥
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खस, पाठा, इन्द्रजौ, बासा ( अडूसा ), लाल चन्दन, नागरमोथा, अतीस, और सोंठ समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
खस, कमल, नीलोफर, लालचन्दन और पकी
यह क्वाथ वातपित्त ज्वरको नष्ट करता है। हुई ईंट समान भाग लेकर कूटकर रातको पानीमें
(९१०३) उशीरादिक्वाथः
भिगो दें एवं प्रातःकाल वह पानी नितारकर उसमें खांद और शहद मिलाकर रोगी को पिला दें ।
(ग. नि. । ज्वरा. २ )
इसमें शहद मिलाकर पीने से ज्वरातिसारका नाश होता है।
(९१०४) उशीरादियोगः
( च. सं. । चि. अ. ४ ; ग. नि. | रक्तपित्ता. ८ ) उशीरपद्मोत्पलचन्दनानां
पक्वस्य लोष्टस्य च यः प्रसादः । सशर्करः क्षौद्रयुतः सुशीतो
रक्तातियो प्रशमाय देयः ॥
इति उकारादिकषायप्रकरणम्
इसके सेवन से रक्तपित्त रोगमें होने वाला प्रबल रक्तस्राव बन्द हो जाता है ।
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