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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ इकारादि यह रसायन सर्वरोगनाशक, उत्तम वृष्य तथा । शक्ति उत्पन्न होती है। जिन्हें सर्वत्र सफलताकी आयुष्य, सत्व (बल), स्मृति, शरीर, जठराग्नि और इच्छा हो, जो नवीन अवस्था चाहते हों और जिन्हें इन्द्रियों के बलको बढ़ाने वाली है । लोकप्रिय बनने तथा यश प्राप्त करने की इच्छा हो इसके सेवन से ओज, वर्ण और स्वरकी। उन्हें यह रसायन यथाविधि सेवन करनी चाहिए। अत्यन्त वृद्धि होती तथा विष और अलक्ष्मी (कान्ति (ताम्रचूर्णादिकी भस्में डाली जाए तो उत्तमहै।) हीनता)का नाश होकर समस्त विद्याएं प्राप्त करने की इति इकाराबवलेहप्रकरणम् Orta अथ इकारादिघृतप्रकरणम् (९०७८) इक्ष्वादिघृतम् कल्क-दालचीनी, इलायची, तेजपात, नाग. (वै. म. र. । प. ३) | केसर, क्षीरीवृक्ष (बड़, गूलर, अश्वत्थ,-पीपलवृक्ष-- इक्षुदूर्वामृताधात्रीश्वदंष्ट्रास्वस्तिकोद्भवैः। पिलखन और पारस पीपल ) की कोंपलें, सुगंधस्वरस लिकेराम्बुपयोयुक्तैः सुकल्कितैः ॥ बाला, नागरमोथा, सारिवा, खस, मुलैठी, मिसरी, चातुर्जातपयोवृक्षमुकुलाम्वुपयोधरैः । लाल चन्दन और कूठ समान भाग मिलित १० तोला। सारिवोशीरयष्टयाहसितोपलहिमामयः ॥ १ सेर नवीन ( ताजे ) गोवृतमें उपरोक्त सिद्धं घृतं नवं तूर्ण रक्तपित्तहरं परम । द्रव पदार्थ और कल्क मिलाकर पकावें । जब जलांश अस्थिस्रावं च नारीणां तृड्दाहौ च महावलौ। शुष्क हो जाय तो घीको छान लें। उभयायनमप्याशु रक्तपित्तं हिताशिनाम् । इसे पान, नावन और लेप में प्रयुक्त करने हन्ति पित्तामयान चाम्यान पाननावनलेपनैः॥ और पथ्य पूर्वक रहनेसे ऊचंगत तथा अधोगत द्रव पदार्थ-ईखका रम, दूबका रस, गिलोय रक्तपित्त शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । यह घृत का रस, आमलेका रस, गोखरुका रस, चांगेरीका स्त्रियोंके अस्थिस्राव एवं प्रबल तृषा, दाह और अन्य रस, नारियलका पानी और गोदुग्ध १-१ सेर । । पितरोगोंको भी नष्ट करता है। इति इकारादिघृतप्रकरणम् D For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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