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पीयमानमुदराप्रिनासिका - श्रोत्रनेत्रबल यौवनमदम् ||
आमले और तिलोंके समान भाग मिश्रित चूर्णको एक मास तक घी और शहदके साथ सेबन करनेसे वाणि, कान्ति और यौवनकी वृद्धि होती है।
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
आमला, खांड, तिल और पलाश (ढाक ) के बीज १ - १ भाग लेकर चूर्ण बनावें तथा उसमें १ भाग घी मिलालें। इसे रात्रिको शैया पर जानेके बाद शहदके साथ सेवन करनेसे बलि पलितका नाश होता और तारुण्यकी वृद्धि होती है। शरीमें हाथी के समान बल आ जाता है और बुद्धि वृहस्पतिके समान हो जाती है।
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जाता
[ आकारादि
(९०२६) आमलकादिचूर्णम् (२)
(ग. नि. | परिशि. चूर्णा. )
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धात्री भागेकमुक्तं च पथ्या भागत्र्यं तथा । कणाभागश्रयं चैव द्वौ भागौ चित्रकस्य च ॥ भागैकं सैन्धवस्यैतच्चूर्णमामलकादिकम् । शुधाकरमिदं चूर्ण मन्दानिं विनिवारयेत् ॥
आमला १ भाग, हर्र ३ भाग, पीपल ३ भाग चीतामूल २ भाग और सेंधा नमक १ भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
यह चूर्ण अग्निमांद्यको नष्ट करके क्षुधावृद्धि करता है ।
रात्रिको पानीके, घीके या शहद के साथ आमलेका चूर्ण सेवन करने से जठराभि तथा नासिका श्रोत्र और नेत्रोंका बल बढ़ता और यौवन प्राप्त होता है।
(९०२५) आमलकादिचूर्णम् (१) ( रा. मा. कुष्ठा. ८; ग. नि. । कुष्प्र. ३६ ) यः प्रातरामलकनिम्बदलानि लेढि
चूर्णीकृतान्यनुदिनं विमुक्ततन्द्रः । शीर्णाङ्घ्रिपाणिरवगाढतमोऽपि कुष्ठ
रोगेण कैरपि दिनैः प्रविमुच्यते ऽसौ ॥ आमला और नीमके पत्ते समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
४ सेर आमलेके चूर्णको उसीके स्वरसकी अनेक भावनाएं देकर उसमें ४-४ सेर घी तथा
इसे प्रातः कत्ल ( शहदके साथ) चाटनेसे भयंकर गलित कुष्ठ भी कुछ दिनों में ही नष्ट हो
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शहद और आधासेर पीपलका चूर्ण तथा १ सेर खांड मिलाकर (मृत्पात्रमें भरकर वर्षा ऋतुसे पूर्व )
है ।
( मात्रा - १॥ - २ माशा । अनुपान - उष्ण जल ) (९०२७) आमलक्यादिचूर्णम् (१)
(च. द. | रसा. ६५ )
धात्री चूर्णस्य कंसं स्वरसपरिगतं क्षौद्रसर्पिः समाश कृष्णा मानी सिताष्टप्रसृतयुतमिदं स्थापित भस्मराशौ । वर्षान्ते तत्समश्नन्भवति बिपलितो रूपवर्णप्रभानिर्व्याधिर्बुद्धिमेधा स्मृतिबलवचनस्थैर्य सत्यैरुपेतः ॥
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