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रसप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
४४६
लोहे की कढ़ाइमें डालकर अग्नि पर रक्खें । जब घो सम्प्रताप्य घनस्थूलकणान्क्षिप्त्वाथ कांजिके । जल जाय और अभ्रक अंगारों के समान लाल हो तत्क्षणेन समाहृत्य कुट्टयित्वा रजश्चरेत् ॥ जाय तो और घी डाल दें। इसी प्रकार दस गोघृतेन च तर्ण भर्जयेत्पूर्ववत्रिधा। बार घी डालकर जलावें । तदनन्तर जब वह धात्रीफलरसैस्तद्वद्धात्रीपत्ररसेन वा ॥ अग्निके समान लाल हो जाय तो अग्निसे नीचे । भर्जने भर्जने कार्य शिलापट्टेन पेषणम् । उतारकर ( ठंडा करके ) उसमें उसके बराबर शुद्ध ततः पुनर्नवावासारसैः कानिकमिश्रितैः ।। गंधक डालकर घोटें और फिर बड़की जड़की छालके प्रपुटेशवाराणि दशवाराणि गन्धकैः । क्वाथमें खरल करके टिकिया बनाकर सुखालें तथा एवं संशोधितं व्योमसत्त्वं सर्वगुणोत्तरम् । उन्हें शरावसम्पुट में बन्द करके वराह पुटमें फूंक दें। यथेष्टं विनियोक्तव्यं जारणे च रसायने । ____ इसी प्रकार हर बार गंधक मिलाकर बड़की वेल्लव्योषसमन्वितं घृतयुत वल्लोन्मितं सेवितं जड़की छालके क्वाथमें घोट घोट कर २० पुट दें। दिव्यानं क्षयपाण्डुरुग्ग्रहणिकाशूलामकुष्ठामयम्। इसी प्रकार त्रिफलाके क्वाथ में खरल करके २० | ऊर्वश्वासगदं प्रमेहमरुचिं कासामयं पुट दें । ( हर बार गंधक भी डालना चाहिये )। दुर्धरं मन्दाग्निं जठरव्यथां विजयते योगैरतदनन्तर नीलके पंचांगके रस, गुञ्जामूलके रस या
शेषामयान् ॥ क्वाथ, त्रिफलाके क्वाथ और हर्र की जड़के काथकी अभ्रक सत्वकी डलीको अग्नि में रखकर ध्मायें । १-१ भावना देकर सुखाकर सुरक्षित रखें । * जब वह अंगारेके समान लाल हो जाय तो उसे ____यदि इसे उपरोक्त विधिसे १०० पुट दिये चावलोंकी कांजीमें बुझा दें और फिर तुरन्त ही जायं तो यह अमृतोपम रसायन हो जाती है और निकालकर लोहेकी मूसलीसे कूट लें । जो बड़े बड़े शरीरको अत्यन्त दृढ़ करती है।
कण रह जाएं उन्हें फिर इसी प्रकार गरम करके अभ्रकसत्व से उत्तम अन्य कोई भी रसायन | कांजीमें बुझावें और तुरन्त ही कूट लें । इसी प्रकार नहीं है।
सम्पूर्ण अभ्रकसत्व का बारीक चूर्ण कर लें। (८९६८) अभ्रकरसायनम् (२)
___इस चूर्णमें गोघृत मिलाकर लोहेकी कढ़ाई में (दिव्याभ्रकरसायनम् )
डालकर आग पर रक्खें । जब वह आगके समान ( र. रे. स. । अ.२ ; र. रा. सु.) लाल हो जाय तो अग्निसे नीचे उतारकर अच्छी सत्वस्य गोलकं ध्मातं सत्यसंयुक्तकाधिके । तरह पीसें और पुनः घी मिलाकर भूनें। इसी प्रकार निर्वाप्य तत्क्षणेनैव कुट्टयेल्लोहपारया ॥ ३ बार घी डालकर भूनें। इसी प्रकार ३ बार
*र. र. स. के मतानुसार त्रिफला, मुण्डी, आमलेका रस या आमलेकी पत्तियोंका रस मिलाकर भांगरेके पत्ते और बहेडेकी जड़के क्वाथकी भावना भूनें । हरबार भूननेके पश्चात् शिलापर पत्थरसे देनी चाहिये।
पीसना चाहिये ।
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