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रसपकरणम् ]
परिशिष्ट
४४१
६ भाग धान्याभ्रक में १-१ भाग नागरमोथे ततोस्य काक्षिकस्थस्य चिरं धर्मे विधारयेत । और सोंठका चूर्ण मिलाकर १ दिन कांजोमें पेषणं च विधातव्यं पौन पुन्येन पण्डितैः ।। खरल करें और उसके सूखने पर १ दिन चित्रक चाङ्गेरीस्वाङ्गनिर्यासैरप्येवं विधिमाचरेत् । मूलके क्वाथमें खरल करें तथा टिकिया बनाकर तण्डुलीयकमूलस्य रसेनापि ततः परम् ॥ सुखालें और यथा विधि गजपुटमें फूंक दें। तद- ततोस्मिन्खदिराङ्गारैनीते नीतेऽग्निवर्णताम् । नन्तर उसे त्रिफलाके क्वाथ; खरैटी (बला )के । | क्षिपेत्पुनः पुनः क्षीरे यथा निश्चन्द्रिकं भवेत् ।। क्वाथ, गोमूत्र, मूसलीके रस या क्वाथ, तुलसीके
___कृष्णाभ्रकको खैरके कोयलोंकी अग्नि पर रस और सूरण ( जिमीकन्द)के रसमें घोट घोटकर
तपाकर खूब लाल करें और कांजीमें बुझा दें। पृथक् पृथक् ३-३ पुट दें। बस अभ्रक भस्म तैयार
। तदनन्तर उसे कांजी समेत कई दिन तक धूपमें हो जायगी।
सुखावें और कई बार पीसकर बारीक करें। (८९५२ ) अभ्रकमारणम् (६)
___इसी प्रकार इस चूर्णको तपाकर लाल करके (र. रा. सु.)
चांगेरीके स्वरसमें बुझावें और फिर सुखाकर तपाअङ्गारोपरि विन्यस्त ध्मातमेव दलीकृतम्।। कर चौलाईकी जड़के रसमें बुझावें । तत्पश्चात् उसे निक्षिपेत्कालिके कृष्णमभ्रकं वह्नि सन्निभम् ॥ खैरकी लकडीके अंगारो पर तपा तपाकर अग्निके
धान्याभ्रकविधिः समान लाल करके दूधमे बुझावें । जब तक वह (र. र.)
निश्चन्द्र न हो जाय इसीप्रकार दूधर्मे बुझाते रहें । अथवाभ्रस्य भागो द्वौ टश्चैकं जलैः सह। (८९५३ ) अभ्रकमारणम् (७) द्विदिनं स्थापयेत्पात्रे सूक्ष्म कृत्वा प्रपेषयेत् ।।
(र. रा. सु.) बध्वा धान्ययुतं वस्त्रे मर्दयेत्काभिकैः सह।
धान्याभ्रं गुडतुल्यं च श्रेष्ठं क्षीरेण मर्दितम् । अधोयद्गालितं सूक्ष्म शुद्धं धान्याभ्रकं भवेत् ॥
कुर्यात्सचक्रिकां शुष्का सम्यग्गजपुटे पचेत् ॥ २ भाग अभ्रक और १ भाग सुहागेको एकत्र मिलाकर पानीसे भरे हुवे पात्रमें डाल दें और दो |
ततो धतूर पत्तर कुमारी शशिवाटिका । दिन पश्चात् निकालकर बारीक पीसकर उसमें धान
प्रत्येकं स्वरसेनैव पुटादाशुमतिं व्रजेत् ॥ मिलाकर कपड़ेमें बांधकर पोटली बनावें तथा उसे धान्याभ्रकमें समान भाग गुड़ मिलाकर दूधसे कांजीसे भरे हुवे पात्रमें डालकर दोनों हाथोंसे । घोटें और टिकिया बनाकर सुखा लें तथा शराव रगड़ें। इस क्रियासे जो बारीक अभ्रक पोटलीसे | सम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें पकावें । इसी प्रकार छनकर कांजीमें गिरे उसे निकालकर सुखा लें। धतूरे, पत्तूर (जल पीपल ), धृतकुमारी और पुनयही धान्याभ्रक है।
नवाके रसमें घोट घोटकर पुट दें। ( हरबार गुड़
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