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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् परिशिष्ट ४३६ ( ८९४५) अभ्रकभस्मामृतीकरणम् (१) । अर्कदुग्धैः पुनः पिष्ट्वा कृत्वा टिकडिकाः शुभाः। ( शा. सं. । खं. २ अ. ११; र. र. स. । पू. अ. वेष्टयित्वार्कपत्रैश्च खर्परस्थाः पुनः पचेत् ॥ २;र. रा. सु. ; आ. वे. प्र. । अ. ४; यो. र.; एवमेवार्कदुग्धस्य दद्यात्सप्तपुटानि च । यो. चि. म. । अ. ७; रसे. चि. म. । पुटत्रयं कुमाश्चि त्रिफलायाः पुटत्रयम् ॥ | गुडस्य च पुटं दत्वा पुनः पश्चामृतैः पुटेत् । तुल्यं घृतं मृताभ्रेण लोहपात्रे विपाचयेत । ततो वटजटाकाथैः सम्यक् देयं पुटत्रयम् ॥ घृते जीणे तदभ्रं तु सर्वयोगेषु योजयेत् ॥ एवं निश्चन्द्रतां याति सर्वरोगेषु योजयेत् । ____ अभ्रक भस्ममें उसके बराबर घी मिलाकर | मृत त्वभ्रं हरेन्मृत्युं जरापलितनाशनम् ॥ लोहपात्रमें पकावें । जब घी जल जाय तो अभ्रकको योजितं चानुपाने च सर्वरोगहरं परम् ॥ पीसकर रख लें। __२ सेर कृष्णाभ्रकको पीसकर गोमूत्रमें मिलायहभस्म सर्वत्र प्रयुक्त की जा सकती है। । कर हाण्डी में डालें और चूल्हे पर चढ़ाकर २४ घंटे पाक करें । तदनन्तर उसे आकके दूधमें खरल ( र. रा. सु. ; आ. वे. प्र. । अ. ४ ; वृ. यो. करके टिकिया बनावें और उन्हें सुखाकर आकके त. । त. ४१; रसे. चि. म. । अ. ४ ; र. र.) पत्तोंमें लपेटकर शरावसम्पुटमें बन्द करें एवं त्रिफलात्वकषायस्य पलायान्यादाय षोडशः। गजपुटमें फूंकदें । इसी प्रकार आकके दूधकी सात गोघृतस्य पलान्यष्टौ मृताभ्रस्य पलान् दश ।। पुट दें। तदनन्तर उसे घृतकुमारी के रसकी ३, एकीकृते लोहपात्रे विपचेन्मृदुवह्निना। | त्रिफला क्वाथकी ३, गुड़के पानीकी ३, पंचामृत द्रवे जीर्ण समादाय योगवाहे प्रयोजयेत् ॥ की ३ और बड़की जटाके क्वाथकी ३ पुट दें। अन्येषामपि धातूनाममृतीकरणं ह्ययम् ॥ इस विधिसे अभ्रककी निश्चन्द्र भस्म हो जाती है। ___ त्रिफलेका क्वाथ १ सेर, गोघृत आधा सेर अभ्रक भस्म जरा, मृत्यु, पलित और अनु. और अभ्रक भस्म ५० तोले लेकर सबको एकत्र | पान भेदसे समस्त रोगोंको नष्ट करती है। मिलाकर लोहपात्रमें मन्दाग्नि पर पकावें । जब वह (पञ्चामृत-गिलोय, गोखरु, मूसली, शुष्क हो जाय तो पीसकर सुरक्षित रक्खें। गोरखमुंडी, और शतावर समान भाग लेकर एकत्र __ अन्य धातुओंकी भस्मीका अमृतीकरण भी मिलालें।) इसी प्रकार किया जाता है। ( ८९४८ ) अभ्रकमारणम् (२) ( ८९४७) अभ्रकमारणम् (१) ( यो. चि. म । अ. ७) (र. रा. सु.) कृष्णाभ्रकसमादाय द्विपस्थं चूर्णयेवुधः। पुनर्नवा कुमारों च चपलां वानरी तथा । गोमूत्रलोडितं भाण्डे क्षिप्त्वा वन्हौ दिनं पचेत्॥ मुशलीं चेक्षुवल्लीं च तथा तामलकीरसैः । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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