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रसप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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अथाकारादिरसप्रकरणम् (८९२१) अग्निकुमाररसः (१) मन्दे ह्यग्नौ बातरोगेऽथ शूले (र प्र. सु. । अ. ८)
___ पस्मारे वै सन्निपाते बलासे ।
सेव्यो वल्लं चाकेणापि सम्यक मूतं चैकं गन्धकं च त्रिभागं
क्षारं चाम्लं वर्जयेच्चापिपथ्ये ।। नागं वङ्ग शुल्वतारं च हेम । अभ्रं लोहं तारमाक्षीकवन
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गंधक ३ भाग, मेकैकं वै शोधयित्वा प्रदेयम् ॥
तथा नाग (सीसा) भस्म, बंग भस्म, ताम्र भस्म,
चांदी भस्म, स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, लोहभस्म, मुण्डीश्वेताकाकमाच्यश्वगन्धा
रौप्यमाक्षिक भस्म, और हीरा भस्म १-१ भाग निर्गुण्डयो वै भृङ्गराजेन युक्ताः ।
लेकर प्रथम पारे गंधककी कज्जली बनावें और रसैरेषां वासरान् त्रीन् प्रम
फिर उसमें अन्य औषधियां मिलाकर सबको खल्वे सम्यग्गोलकं कारयेद्धि ।।
गोरखमुंडी, अतीस, मकोय, असगंध, संभाल और ततो धर्मे शोषयेत्तं च गोलं
भंगरेके रसमें ३-३ दिन खरल करके गोला बनावें लेपाः सम्यक् पश्च मृद्भिः प्रदेयाः।
और उसे धूपमें सुखाकर उस पर (कपड़ा लपेट भाण्डं चाधै पूरयेद्वालुकाभि
कर) ५ बार मिट्टीका लेप करदें। एवं उसके सूख मध्ये गोलं निक्षिपेन्मुद्रयेच्च ।।
जाने पर एक हाण्डीमें आधी दूर तक रेत भरकर अनि कुर्याधामषष्टयष्टमात्र
उसमें वह गोला रक्खें और फिर हारडीको मुंह शीते सिद्धो जायते वै रसोऽयम् । तक रेतसे भरकर उस पर शराव ढककर सन्धिको कृष्णाकायैर्भावनाः पञ्च देया
अच्छी तरह बन्द कर दें। अब इस हाण्डीको __ आद्रेणैवं भावयेत्पश्चवारान् ॥ चूल्हे पर चढ़ाकर ६८ पहर की अग्नि दें और फिर ज्वालामुख्याः स्वै रसैः सप्तवारं स्वांग शीतल होने पर औषधको निकालकर पीस ___ भाव्यं चापि सूर्यवारं हि वह्ने । लें । तदनन्तर उसे पीपलके क्वाथको ५, अद्रकके निर्गुण्डया वै भावना भानुमात्राः रसकी ५, कलियारीके स्वरसकी ७, चोतामूलके
पश्चात्कार्या वल्लमात्रा वटी हि ॥ क्वाथको १२ और संभालुके रसकी १२ भावना देया सद्भिः पञ्चमांश. हि कृष्णा
देकर २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें। तद्वच्छुण्ठी चूर्णिता तत्पमाणा ।
इनमेंसे १-१ गोली पांचवां भाग पीपल कासे श्वासे मूत्रकृच्छ्रे ग्रहण्या
और सोंठ का चूर्ण मिलाकर अद्रकके रसके साथ मर्शःशोफे चाश्मरीमेदूरोगे ॥ सेवन करनेसे कास, श्वास, मूत्रकृच्छ्, ग्रहणी-रोग,
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