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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ अकारादि
(८९०९) अर्धनारीश्वररसः (१) (८९११) अर्धनारीश्वररसः (३) (र. चं. । ज्वरा.)
(र. का. धे. । ज्वरा.) व्योषं च त्रिफलां मृतं लोहं भृङ्गं च ताम्रकम् । मजा निम्बफलानां च राजवृक्षफलस्य च । सपत्रस्त्रीपयश्चैव कारयेद्गुटिकां दृढाम् ॥ नटी च कणा चेति शाणमात्रं पृथक्पृथक् ।। दुग्धेन चाअनं कृत्वा एकाङ्गज्वरनाशनम् ॥ अतिक्षणं वाससा च गुटिका च कृता शुभा।
सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, | कार्या निम्बरसोपेता साक्षान्माषप्रमाणतः ।। शुद्ध पारद, लोह भस्म, भंगरा और ताम्र-भस्म निम्बूकरसयोगेन चक्षुरेकमथाञ्जयेत् । समान भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें और सदोषज्वरनाशः स्यादिति धन्वन्तरीरितम् ॥ फिर पुत्रवती स्त्रीके दूधमें घोटकर गोलियां बनालें। अर्धनारीश्वरो नाम रसः परमदुर्लभः ।। ___(स्त्रीके ) दूधमें घिसकर जिस आंखमें इसका भैरषेण स्वयं प्रोक्तः पार्वत्याः मेमयोगतः ।। अंजन किया जायगा उसी ओरका ज्वर जाता ___नीमके बीजोंकी गिरी, अमलतासका गूदा, रहेगा।
शुद्ध मनसिल और पीपलका चूर्ण समान भाग (८९१०) अर्धनारीश्वररसः (२) ।
लेकर एकत्र खरल करके अत्यन्त सूक्ष्म चूर्ण बनावें (र. का. धे. । ज्वरा.)
और उसे नीमके रसमें खरल करके गोलियां
बना लें। रसस्य भाग एक: स्याञ्चत्वारो जयपालजाः ।। सप्त वाकुचिबीजोत्थाः पिप्पल्या एकविंशतिः।।
इसे नीबूके रसमें घिसकर जिम आंखमें सर्वेतुल्यं निम्बबीजचूर्ण सर्व समीकतम। अंजन लगाया जायगा उसी ओरका सदोष ज्वर दोलायन्त्रे निम्बरसे सप्ताहं पाचयेद्भशम ॥
नष्ट हो जायगा । इस परम दुर्लभ रसका आविष्कार अन्तधूमेन नाम्ना स्यादर्धनारीश्वरो रसः ।।
स्वयं भैरव महादेवने किया था। अमनात्सन्निपातघ्नस्त तत्पार्श्वगतो भवेत् ॥ (८९१२) अश्वत्थपत्रादिवटी
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्र जमालगोटा ४ (वै. म. र. । पटल १६) भाग, बाबचीके बीज ७ भाग, पीपलका चूर्ण २१ अश्वत्थपत्रकुवलयदलचन्द्रैः कृता गुटिका । भाग और नीमके बीजोंका चूर्ण सबके बराबर (३३ तिमिरापहा प्रसिद्धा भास्करकिरणावलीव भाग) लेकर सबको एकत्र खरल करके ( गोला
दिवसमुखे ॥ बनाकर चार ते कपड़े में लपेट कर ) दोलायन्त्र पीपल वृक्षके पत्ते और नीलोत्पलके फूलकी विधिसे १ सप्ताह तक नीमके रसमें पकावें। पंखड़ियां तथा कपूर समान भाग लेकर सबको
जिस आंखमें इसका अंजन किया जायगा । ( पानीसे ) बारीक पीसकर गोलियां बना लें। उसी ओरका सन्निपात ज्वर जाता रहेगा।
इसे आंखमें आंजनेसे तिमिरका नाश होता है।
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