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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] परिशिष्ट . ४२३ बाब चीके बीज २० तोले, हरताल ५ तोले, (८८९८) अश्वत्थादिलेपः (१) मनसिल ७॥ माशे, चौंटली (गुंजा ) ७॥ माशे (व. से. । बालरोगा.) और कलियारीकी जड़ ७॥ माशे लेकर सबको अश्वत्थत्वग्दलक्षौद्वैर्मुखपाके प्रलेपनम् । बारीक पीसकर गोमूत्रमें खरल करके लेप करनेमे दायष्टचाभयाजाजीपत्रक्षौरैस्तथापरम् ॥ श्वित्र (सफेद कोढ़) नष्ट हो जाता है। पीपल वृक्षकी छाल और उसके पत्तोंको पीस(८८९५) अश्वगन्धादिलेपः (१) 'कर शहद में मिलाकर लेप करनेसे मुखपाक नष्ट (भा. प्र. । म. खं. २) होता है। अश्वगन्धा रुहा लोधं कट्फलं मधुयष्टिका। दारुहल्दी, मुलैठी, हर्र, जीरा और तेजपात; समझा धातकीपुष्पं परमं व्रणरोपणम् ॥ इनके समान भाग मिलित चूर्णको शहद में मिलाकर ___ असगंध, दूर्वा ( दूब घास ), लोध, कायफल, लेप करनेसे भी मुखपाक नष्ट होता है। मुलैठी, मजीठ और धायके फूल; इनका चूर्ण समान (८८९९) अश्वत्थादिलेपः (२) भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर ( शहदमें अथवा । (वृ. मा. । व्रणा.) घीमें मिलाकर ) लेप करनेसे ब्रण भर जाता है। अन्तर्दग्धकुठारको दहन लेपाभिहन्तिव्रणयह उत्तम प्रयोग है। मश्वत्थस्य विशुद्धवल्कलकृतं चूर्ण तथा गुण्ड(८८९६) अश्वगन्धादिलेपः (२) नात् ॥ (वै. म. र.। पटल ११) कुठेरक (तुलसी भेद ) की अन्तर्दग्ध राख और अश्वगन्धारसः स्वल्पपारदेन विमिश्रितः। चीतामूलका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर लिप्तो ममूरिकार्तानां भवेद्रक्षाकरोनणाम् ॥ घाव पर लगानेसे या पीपल वृक्षकी छालका बारीक असग-धके रसमें जरासा पारा मिलाकर खरल ! 'चूर्ण लगानेसे घाव भर जाता है। करके, मसूरिकाग्रस्त रोगीके शरीर पर लेप करनेसे (८९००) अष्टमङ्गल उद्वर्तनम् वह सुरक्षित रहता है। (यो. त.। त. ७७) (८८९७) अश्वत्थादिभस्मलेपः शटोकिरातसिद्धार्थमूर्वामुस्तोपकुश्चिकाः । (३. मा. | गलगण्डा.) श्वेतः शिरीप इत्येषां छागीक्षीरेण लेपनम ।। अश्वत्थकाण्डं निचुलं गवां दन्तं च दाहयेत् । ज्वरदाहवमीरेकरक्षस्तृण्नाशनं शिशोः ॥ सप्ताहमालसंयुक्तं भस्म हन्त्यपची क्षणात् ॥ कचूर, चिरायता, सफेद सरसों, मूर्वा, नागर पीपल वृक्षका कार, हि जल और गायका दांत मोथा, कलौंजी और सफेद सिरसको छोल समान समान भाग लेकर हाण्डी में बन्द करके भस्म करें : भाग लेकर चूर्ण करें। इसे बकरीके दूधमें पीसकर इसे कांजीमें मिलाकर सात दिन तक खा रहने दें। । शरीर पर लेप करनेसे बच्चों के ज्वर, दाह, वमन इसका लेप करनेसे अपची शीघ्रही नष्ट हो जाती है।। दस्त और तृषाका नाश होता है। इत्यकारादि-लेपप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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