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लेपप्रकरणम् ]
परिशिष्ट .
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बाब चीके बीज २० तोले, हरताल ५ तोले, (८८९८) अश्वत्थादिलेपः (१) मनसिल ७॥ माशे, चौंटली (गुंजा ) ७॥ माशे
(व. से. । बालरोगा.) और कलियारीकी जड़ ७॥ माशे लेकर सबको अश्वत्थत्वग्दलक्षौद्वैर्मुखपाके प्रलेपनम् । बारीक पीसकर गोमूत्रमें खरल करके लेप करनेमे दायष्टचाभयाजाजीपत्रक्षौरैस्तथापरम् ॥ श्वित्र (सफेद कोढ़) नष्ट हो जाता है।
पीपल वृक्षकी छाल और उसके पत्तोंको पीस(८८९५) अश्वगन्धादिलेपः (१) 'कर शहद में मिलाकर लेप करनेसे मुखपाक नष्ट
(भा. प्र. । म. खं. २) होता है। अश्वगन्धा रुहा लोधं कट्फलं मधुयष्टिका। दारुहल्दी, मुलैठी, हर्र, जीरा और तेजपात; समझा धातकीपुष्पं परमं व्रणरोपणम् ॥ इनके समान भाग मिलित चूर्णको शहद में मिलाकर
___ असगंध, दूर्वा ( दूब घास ), लोध, कायफल, लेप करनेसे भी मुखपाक नष्ट होता है। मुलैठी, मजीठ और धायके फूल; इनका चूर्ण समान (८८९९) अश्वत्थादिलेपः (२) भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर ( शहदमें अथवा । (वृ. मा. । व्रणा.) घीमें मिलाकर ) लेप करनेसे ब्रण भर जाता है। अन्तर्दग्धकुठारको दहन लेपाभिहन्तिव्रणयह उत्तम प्रयोग है।
मश्वत्थस्य विशुद्धवल्कलकृतं चूर्ण तथा गुण्ड(८८९६) अश्वगन्धादिलेपः (२)
नात् ॥ (वै. म. र.। पटल ११)
कुठेरक (तुलसी भेद ) की अन्तर्दग्ध राख और अश्वगन्धारसः स्वल्पपारदेन विमिश्रितः। चीतामूलका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर लिप्तो ममूरिकार्तानां भवेद्रक्षाकरोनणाम् ॥ घाव पर लगानेसे या पीपल वृक्षकी छालका बारीक
असग-धके रसमें जरासा पारा मिलाकर खरल ! 'चूर्ण लगानेसे घाव भर जाता है। करके, मसूरिकाग्रस्त रोगीके शरीर पर लेप करनेसे (८९००) अष्टमङ्गल उद्वर्तनम् वह सुरक्षित रहता है।
(यो. त.। त. ७७) (८८९७) अश्वत्थादिभस्मलेपः शटोकिरातसिद्धार्थमूर्वामुस्तोपकुश्चिकाः ।
(३. मा. | गलगण्डा.) श्वेतः शिरीप इत्येषां छागीक्षीरेण लेपनम ।। अश्वत्थकाण्डं निचुलं गवां दन्तं च दाहयेत् । ज्वरदाहवमीरेकरक्षस्तृण्नाशनं शिशोः ॥ सप्ताहमालसंयुक्तं भस्म हन्त्यपची क्षणात् ॥ कचूर, चिरायता, सफेद सरसों, मूर्वा, नागर
पीपल वृक्षका कार, हि जल और गायका दांत मोथा, कलौंजी और सफेद सिरसको छोल समान समान भाग लेकर हाण्डी में बन्द करके भस्म करें : भाग लेकर चूर्ण करें। इसे बकरीके दूधमें पीसकर इसे कांजीमें मिलाकर सात दिन तक खा रहने दें। । शरीर पर लेप करनेसे बच्चों के ज्वर, दाह, वमन इसका लेप करनेसे अपची शीघ्रही नष्ट हो जाती है।। दस्त और तृषाका नाश होता है।
इत्यकारादि-लेपप्रकरणम्
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