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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ अकारादि अथाकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् अयोगुग्गुलः (व. से. । शूला.) प्रयोग संख्या २४२२ " त्रिफला गुग्गुलुः " । देखिये। इत्यकारादिगुग्गुलुपकरणम् अथाकारायवलेहप्रकरणम् अगस्त्य हरीतक्यवलेहः तस्योपरि पिवेत् क्षीरं भोजनं च ततः परम् । (च. द. कासा. ११; वृ. मा. । राजयक्ष्मा. ; र. | राजयक्ष्मी लभेत् सौख्यं पाण्डुकामलकान् र. कासा. ; हा. सं. स्था. ३ अ. ९; वृ. यो.. जयेत् ॥ त.। त. ६७) | अतीसारो विनश्येत्तु बले नागबलो भवेत् ।। प्र. सं. ३०१८ " दशमूल हरीतकी " नं. १ सेर गिलोयको पत्थरपर पीसकर ८ सेर १ देखिये। पानीमें पका और २ सेर रहने पर छान लें। ___ वृ. यो. त. में काव्य द्रव्योंमें जवासा, गिलोय, फिर १०० हर्रोको आठ गुने पानीमें पकावें और पाठा और रास्ना अधिक हैं। चौथा भाग रहने पर छान लें। इसी प्रकार ६। सेर कुड़ेकी छालको ३२ सेर पानीमें पकायें और (८८३९) अमृतप्राशावलेहः ८ सेर रहने पर छान लें । तपश्चात् ये तीनों ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ९) क्याथ और २ सेर शतावरका रस एकत्र मिलाकर शतमूलीरसः प्रस्थं गुडूचीकल्कमस्थकम् । पुनः पकावें । जब कर छीको लगने लगे तो उसमें हरीतकी शतं चान्यत् कुटजस्य त्वचस्तुलाम् ।। ५०० नग पीपल का चूर्ण, १०० आमलोंका निःक्वाथ्यं च पृथक्त्वेन पूतांश्चैकत्र मिश्रयेत्। चूर्ण, एवं दालचीनी, इलायची, चीतामूल, कचूर, दावर्वीप्रलेपनं दृष्ट्वा कृष्णानां शतपश्चकम् ।। द्राक्ष (मुनक्का), कूठ, शिलाजीत, शिलाभेद ( पाषाशतं चामलकीचूर्णं त्वगेला चित्रकं सठी। णभेद ) और तालमूली (मूसली); इनका चूर्ण १। द्राक्षा कुष्ठं शिलाजिच्च शिलाभेदस्त तालकम। १। तोला मिलाकर ठंडा करके सुरक्षित रक्खें । योज्यं तत्राक्षमानेन भक्षयेत् सितसर्पिषा ॥ इसे यथोचित मात्रानुसार घी और खांड के For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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