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अकारादि-चूर्ण
(२३)
___(च. सं.)
एलेयक, मूल सहित मुद्गपर्णी, शतावर, | अमृतेन्द्रयवारिष्टपटोलं कटुरोहिणीम् । विदारीकंद, वाराहीकंद, मुलहठी, महुवा, बंसलोचन | नागरं चन्दनं मुस्तं पिप्पलीचूर्णसंयुतम् ॥
और दाख प्रत्येक १०-१० तोले सरलकाष्ट, सफेद अमृताष्टक इत्येष पित्तश्लेष्मज्वरापहः । चन्दन, दालचीनी, नीलोफर, कुमुद, दोनों काकोली, | हल्लासारोचकच्छर्दिपिपासादाहनाशनः ॥ मेदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, चीनी प्रत्येक २॥ हरड़, इंद्रयव, नीम, पटोलपत्र, कुटकी, सोंठ, तोला ।इन सब का चूर्ण कर उसे एलेयक, विदारी- | चन्दन, नागरमोथा और पीपल । इनका चूर्ण कंद, वाराहीकंद और मुद्गपर्णी तथा शतावर के पितश्लेष्म-ज्वर, उबकाई, अरुचि, छर्दि, पिपासा रस की भावना दे और फिर सब को ईख, आमला | और दाह का नाश करता है ।
और शहद की सात बार भावना देकर रक्खे। [७२] अम्लकादि चूर्णम् इस चूर्णको प्रातःकाल दूधके साथ पीनेसे अङ्गदाह, शिरोदाह, प्रबल रक्तपित्त, शिरका कांपना और
चतुर्णा प्रस्थमम्लानां त्र्यूषणं च पलत्रयम् । आंखका फड़कना, भ्रम इत्यादि रोगोंका नाश लवणानां च चत्वारि शर्करायाः पलाष्टकम् ॥ होता है।
संचूर्ण्य सूपानरागादिष्ववचारयेत् । [६९] अमृतादि चूर्णम् (१)
कासाजीरुचिश्वासहृत्पाण्डामयगुल्मनुत् ॥ (भा. प्र., म. खं. आ. वा.)
| चतुराम्ल १ सेर, त्रिकुटा १५ तोला, लवण २० अमृतानागरगोक्षुरमुण्डितिकावरुणकैः कृतं ।
| तोला, चीनी ४० तोला, इस चूर्ण को दाल और चूर्णम् ।
अन्नादि में डाल कर सेवन करने से खांसी, मस्त्वारनालपीतं सामानिलनाशनं ख्यातम् ॥
अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृद्रोग, पाण्डु और गुल्म गिलोय, सोंठ, गोखरु, गोरख मुण्डी और
का नाश होता है। बरना। इनका चूर्ण मस्तु और आरनाल के साथ
[७३] अयोरजादि चूर्णम् पीने से आमवात का नाश होता है। [७०] अमृतादि चूर्णम् (२)
(बृ. नि. र. काम.) (वृ. नि. र., वा. र.)
अयोरजोव्योषविडङ्गचूर्ण अमृता कटुका शुण्ठी यष्टीकल्क समाक्षिकम् ।। लिह्याद्धरिद्रात्रिफलान्वितं वा। गोमूत्रपीतं जयति सकर्फ वातशोणितं ॥ सशर्कराकामलिनांत्रिमण्डी गिलोय, कुटकी, सोंठ और मुलैठी । इनका चूर्ण
हितागवाक्षी सगुडाचशुण्ठी ॥ शहद के साथ चाटकर ऊपर से गोमूत्र पीने से | लोहचूर्ण, त्रिकुटा, बिडंग, हल्दी और त्रिफला । कफ दोषयुक्त वातरक्त को आराम होता है। अथवा निसोत और मिश्री वा इन्द्रायण का गूदा, [७१] अमृताष्टक चूर्णम् गुड़ और सोंठ मिलाकर खाने से कामला को (भै. र. ज्व. चि.)
आराम होता है।
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