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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिभाषा प्रकरणम् (३४९) आरनाल भावना विधि आरनालस्तु गोधूमैरामैः स्थानिस्तुपीकृतैः। भाव्य द्रव्य समं क्वाथ्यं क्वाथ्यादष्टगुणं जलम् । पक्वैर्वा सन्धितैस्तत् तु सौवीरसदृशं गुणैः।। । अष्टांशशेषितः क्वाथो भाव्यानां तेन भावना । ___ कञ्चे या पक्के तुप रहित गेहुंओं को स. | द्रवेण यावताद्रव्यमेकी भूयार्द्रतां व्रजेत् । न्धान करनेसे जो पदार्थ तैयार होता है उसका | तावत् प्रमाणं कर्तव्यं भिषभिर्भावनाविधौ ॥ नाम "आरनाल" है । इसके गुण "सौवीर" भाव्य द्रव्य (जिस द्रव्यको भावना देनी नामक सुरा के समान हैं। हो उस) के बराबर क्वाथ्य द्रव्य (जिन चीजोंकी भावना देनी हो वह चीजें) लेकर पाचनानां द्रव्यपरिमाणम् आठगुने पानी में पकावें जब आठवां भाग दशरक्तिकमानेन गृहीत्वा तोलकद्वये । बाकी रहे तो उतारकर छान लें। दत्त्वाम्भः षोडशगुणं ग्राह्यं पादावशेषितुम् ॥ जिस चीज़में भावना देनी हो उसमें यह इमां मात्रां प्रकुर्वन्ति भिषजः पाचनेषु च ॥ क्वाथ इतना डालना चाहिए कि दोनों चीजें पाचन तैयार करने के लिए १० रत्ती वाले मिलकर पतली हो जायं। माषे के हिसाबसे २ तोला (२॥ तोला) औषधिको १६ गुने (आधासेर) पानी में पकाकर मन्थः चौथाई (१० तोला) वाकी रखना चाहिए । शक्तषः सर्पिषा युक्ता शीतवारिपरिप्लुताः। नात्यच्छा नाति सांद्राश्च मन्थ इत्यभिधीयते ॥ अन्नादि साधनम् सत्तमें घी और ठंडा पानी डालकर मथें । क्वाथ्यद्रव्याञ्जलिं क्षुण्णं श्रपयित्वा जलाढके। | पानी इतना होना चाहिए कि सत्त न बहुत पादावशेषे तेनाथ यवाग्वाद्युपकल्पयेत् ॥ . पतला हो जाय और न बहुत गाढा रहे। जिन औषधियोंके क्वाथसे यवागु आदि तर्पणः बनानी हो उन सबको १ अञ्जली (२० तोले) ज्वरापहैः फलरसैर्युक्तं समधुशर्करम् । लेकर कूटकर ४ सेर पानी में पकावें, जब एक द्रवेणालोडितास्ते स्युस्तर्पणं लाजशक्तवः॥ सेर पानी बाकी रहे तो उतारकर छान ले. ___ धानकी खीलोंके सत्तमें ज्वरनाशक फलों इस पानीसे यवागु आदि बनानी चाहिए ।। | के रस, शहद और खांड मिलाकर उसे द्रव बनाने की विधि नीचे लिखी जाती है। पदार्थ में मिलावें । इसका नाम "तर्पण" है । अन्नं पञ्चगुणे साध्यं विलेपी च चतुर्गुणे । मण्डश्चतुर्दशगुणे यवागूः पढगुणेऽम्भसि ॥ ____ अन्न पांच गुने पानी (दवाओंके क्याथ में), दधि कूचिका विलेपी चार गुने में और मण्ड १४ गने में ! दध्नासह पयः पक्वं सा भवेदधिकृर्चिका। तथा यवागु छः गुने पानी में पकानी चाहिए, दही के साथ पकाए हुबे दूधका नाम सिक्थकै रहितो मण्डः पेया सिक्थ समन्विता।। “दधि कूचिका" है। यवागूहु सिकथा स्याद्विलेपी विरलद्रवा ॥ ___ मण्डमें कण बिलकुल नहीं रहता, पेयामें तक कूर्चिका कुछ कण रहता है, यवागूमें कण बहुत अधिक तक्रेण पक्वं यतक्षीरं सा भवेत् तक्रकूर्चिका । होता है और विलेपीमें पानी बहुत कम तक के साथ पकाए हुवे दुधका माम होता है। | "तक कृचिका" है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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