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(२९४)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
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३ माशा मिश्री के साथ मिलाकर ठंडे पानी के सात दिन तक घोटे, फिर बांसे के रस या मुण्डी के साथ देना चाहिए।
रस, तालमूली के या दशमूल के रस में एवं जिन ___ यह रसायन कमज़ोरी, प्रमेह, रक्तविकार | रोगों में प्रयोग करना हो उन रोग को नाश करने और ज्वरादि का नाश करता है। (व्यवहारिक | वाली औषधियों के रसमें सात सात दिन तक घोटे । मात्रा १-२ रत्ती)
__ प्रथम पश्च कर्म के द्वारा देह की शुद्धि करके [९७६] कान्ताभ्रकम् (१) | यह रसायन त्रिफला के चूर्ण तथा शहद और घीके
(र. र. स. । अ. २६) साथ सेवन करने से पांडु, सूजन, उदररोग, अफारा, कान्ताभ्रकशिलाधातुविषस्तकमाक्षिकम् ।। संग्रहणी, शोष, खांसी, संततज्वर, पुराना बुखार, शीलितं मधुसर्पिभ्यां व्याधिवाक्यमृत्युजित्॥ विषमज्वर, सब प्रकारके कुष्ठ और बीस प्रकार के
कांतिसार लोह भस्म, अभ्रक भस्म, शिला- प्रमेहों का नाश होता है। जीत, शुद्ध मीठा तेलिया, शुद्ध पारा और सोना-[९७८] कामदीपकरसः मक्खी भस्म बराबर २ लेकर चूर्ण करके शहद
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(र. र. । वाजी.) और घीके साथ सेवन करने से व्याधि, बुढ़ापा | गंधकस्य त तोलैकं कृत्वा वै तण्डुलाकृतिम् । और (अकाल) मृत्यु का नाश होता है ।
दत्वा गद्रवं रौद्रे भावयेदिनसप्तकम् ॥ [९७७] कान्ताधकम् (२)
तच्चूर्ण प्रक्षिपेत्तत्र प्रत्येकं माषकद्वयम् । (र. र. स.। अ. २६)
जातीफलस्य कोषस्य तथा चंद्रलवंगयोः ॥ सिद्धमभ्रं समं कान्तं मर्दयेदावारिणा ।
तत:सगुडक कृत्वा तस्य गुंजाचतुष्टयम् । कलांशं हेमचूर्णस्य बीजपूररसे पुनः॥
अभ्यर्च्य भास्करं प्रातर्भक्षयेत्प्रत्यहं ततः ॥ मर्दयेत्खल्वमध्यस्थं यावत्सप्तदिनावधि । आर्दक सैन्धवोपेतं मरिचस्य च सप्तकम् । आटरूपरसेनैव तथा मुण्डीरसेन वा ॥
| सचानुचर्वणं कृत्वा पिबेत्क्षीरपलद्वयम् ॥ तालमूलीरसेनैव दशमूलीरसेन वा।
अनेनैव प्रयोगेण स्थविरोऽपि युवायते ॥ तत्तद्रोगहरैः काथैर्भावयेत्सप्तधा भिषक् ।।
१ तोला गन्धक के बारीक २ चावल त्रिफलाव्योषचूर्ण च मध्वाज्याभ्यां प्रयोजयेत् । जैसे टकड़े करके उन्हें सात दिन तक धूपमें भांगरे पश्वकर्मविशुद्धेन सेव्यमेतद्रसायनम् ॥ । के रसकी भावना दे। पाण्डुशोफोदरानाहग्रहणीशोषकासजित् । । फिर उसमें जायफल, जावित्री, कपूर और सततं सततं चैव पुराणां विषम ज्वरम् ॥ लौंग का २-२ माशे चूर्ण मिलाकर गुड़में मिला निहन्यात्सर्वकुष्ठानि प्रमेहान्विशति जयेत् । कर ४--४ रत्ती की गोलियां बनावें । कान्ताभ्रकमिदं प्रोक्तं रसायनमनुत्तमम् ॥ प्रतिदिन प्रातः काल सूर्य की वन्दना के
अभ्रक भस्म और कान्त लोह भस्म १-१ पश्चात् १ गोली खाकर थोड़ासा अदरक और भाग लेकर अदरक के रसमें घोटें फिर उसमें १६. | सेंधानमक तथा ७ काली मिर्च चबाकर १० तोला मां भाग सोना मिलाकर विमरे नींबू के रसमें । दूध पियें ।
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