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ककारादि-गुटिका
(२२५)
की खील, पांचोलवण और निसोत प्रत्येक ३२- । अदरक, बच और निसोत प्रत्येक ५-५ तोला, ३२ माषा । दन्ती, कपूर कचरी, पोखरमूल, बाय-। हींग १५ तोला, जवाखार १० तोला, अम्लवेत विडंग, अनारदाना, हैड़, चीता, अमलबेत और / १० तोला, अजवायन, जीरा, कालीमिर्च और सोंठ प्रत्येक ६४-६४ माषा । सब चीज़ोंका चूर्ण | धनिया प्रत्येक १।-१। तोला । कलांजी और करके बिजौरे नीबूके रसमें घोटकर गोलियां बनावें। अजमोद २१-२॥ तोला। सबका चर्ण करके
इन्हें घृत, दूध, मद्य, कांजी या गरम पानीके | | बिजौरे नीबूके रसमें घोटकर गोलियां बनावें । साथ सेवन करनेसे गुल्मका नाश होता है । मद्यके । इनमेंसे १-२ या ३ गोली प्रतिदिन अल्प सेवन करने से वातज गुल्म, गो--दुग्धके साथ गरम पानी, कांजी, मद्य, यूष, घृत या दूधके साथ पित्तज, गोमूत्रके साथ कफज, दशमूलके काथके
| सेवन करनेसे गुल्म, बवासीर, हृद्रोग और क्रिमि साथ त्रिदोषज और ऊँटनीके दूधके साथ सेवन
नष्ट होते हैं। करनेसे स्त्रियोंका रक्तगुल्म नष्ट होता है। यह | गोलियां हृद्रोग, ग्रहणी, शूल, क्रिमि और बवासीर
__गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे पुराना कफज का भी नाश करती हैं।
गुल्म, दूधसे पित्तज गुल्म और मद्य तथा कांजीके
साथ सेवन करनेसे वातज गुल्म नष्ट होता है । [७५१] काङ्कायन गुटिका (३) (च. द. गुल्मे )
त्रिफलाके काथ या गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे शठी पुष्करमलं च दन्तीं चित्रकमाढकीम। | सन्निपात गुल्म और ऊँटनी के दूध के साथ सेवन शृङ्गवेरं वां चैव पलिकानि समाहरेत। करने से स्त्रियोंका रक्त गुल्म नष्ट होता है । त्रिवृतायाः पलं चैव कुर्यात् त्रीणि च हिंगुनः। [७५२] कामदेववटी यवक्षारपले द्वे च द्वे पले चाम्लवेतसात् ॥ (वृ. यो. त. १४७ त.) यमान्यजाजी मरिच धान्यकं चेति कार्पिकम् । कुष्ठं कद्फलं सैन्धव त्रिकटुकं मेथीयवानीद्वयम् उपकुश्चयजमोदाभ्यां तथा चाष्टमिकामपि ॥ वासामोचरसं विदारिमुसलीमातीफलं चित्रकम्।। मातुलुङ्गरसेनैव गुटिकाः कारयेद्भिषक् । । जीरं चापरजीरकं गजकणाद्राक्षाभयावानरी । तासामेकां पिबेद् द्वे च तिस्त्रोवापि सुखाम्बुना॥ तालीसं त्रिसुगन्धिकं त्रिलवणं वैभीतकंशृङ्गीका।। अम्लैश्च मद्यपेश्च घृतेन पयसाथवा। रम्भाकन्दशतावरीहयशटीयष्टीप्रियालामृता। एषा कांकायनेनोक्ता गुडिका गुल्मनाशिनी ॥ जातिपत्रलवङ्गकेसरजलं गोक्षुरकं शाल्मली ॥ अशोहद्रोगशमनो क्रिमिणां च विनाशिनी। धात्रीमाषपुनर्नवाश्च कनकं शृङ्गाटकं मस्तकी । गोमूत्रयुक्ता शमयेत्कफगुल्मं चिरोत्थितम् । मांसी चापी बलात्रयं च नलदं क्षीरेण पित्तगुल्मं च मद्यैरम्लैश्च वातिकम् ।
मार्गीभकर्णस्तिलाः। त्रिफलारसमूत्रैश्च नियच्छेत्सान्निपातिकम् ॥ कोलं करहाटकं च विजयः श्रीरुपगन्धा कुहू. रक्तगुल्मे च नारीणामुष्ट्रीक्षीरेणपाययेत् । मज्जा पनकबीजमेतदखिलं चूर्णीकृतं स्निग्धकम्
कपूरकचरी, पोखरमूल, दन्ती, चीता, अरहर, 'एतत्कर्षमितं पृथक्पृथगयो तुर्याशतुल्यां जयाम्
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