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(२२२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
इन्हें मुंह में रखने से कफका नाश होता है। । मन्दे च वह्नौ स्मरपुष्टि की [७४०] करञ्जबीजवर्ती
___ साऽऽफेनसेवाकुलमुक्तिदात्री ॥ (वृ. नि. र; ग. नि; बु. यो. त. ७१; वृ. मा.) कपूर, जायफल, जावित्री, धतूरेके बीज, पलाशपुष्पस्वरसैबहुश:परिभाविता । समन्दरसोख, अकरकरा, त्रिकुटा, बच और करंकरञ्जबीजं सवर्ति दृष्टेः पुष्पं विनाशयेत् ॥ जवा । सब चीजें समान भाग । शुद्ध भांग सबके ____ करंजवेके बीजोंको ढाकके फूलोंके रसकी
वजनसे आधी, पुरानी अफ़ीम भांगके बराबर और अनेक भावना देकर वर्ति बनावें । इसे नेत्रों में भांगसे आधा शुद्ध मीठातेलिया मिलाकर चर्ण करके आंजने से नेत्रपुष्प (फूला) नष्ट होता है।
भांगरेके रसमें घोटकर बेरकी गुठलीके बराबर
गोलियां बनावें। [७४१] कपूरवर्तिः (वृ. नि. र. । मूत्राघा.)
। इनके सेवनसे शीतवात, संग्रहणी, बवासीर, कर्पूररजसा युक्ता वस्त्रवर्तिः शनैः शनैः।
प्रवल अतिसार, अग्निमांद्य और अफ़ीमकी आदत मेटूमागान्तरे न्यस्ता मूत्राघातं व्यपोहति ॥
दूर होती है एवं काम शक्ति बढ़ती है। ____ कपूरके चूर्णके साथ कपड़ेकीx बत्ती बनाकर उसे धीरे २ मूत्रमार्ग में पहुंचानेसे मूत्राघात (पेशाब
[७४३] कलिंगाद्यगुटिका (धन्व.। ज्व.)
| कलिंगबिल्वजम्बाम्रकपित्थं सरसाञ्जनम्। बन्द होना) नष्ट होता है।
| लाक्षा हरिद्रे हीबेरं कदमलं शुकनासिकाम् ॥ [७४२] कपूरसुन्दरी षटिका लोधं मोचरसं शंखं धातकी वटशुङ्गकम् । (र. प्र.सु. अ. ८)
पिष्टा तण्डुलतोयेन वटकानक्षसम्मितान् ॥ कर्पूरजातीफलजातिपत्रिका
छायाशुष्कान् पिबेच्छीघ्रं वरातिसारशान्तये । धत्तूरवीजं जलराशिशोषणम् । रक्तप्रसादनाचैते शूलातिसारनाशनाः ॥ आकल्लकं व्योपमिदं समांशं
इन्द्रजौ, बेलगिरी, जामनकी गुठली, आमकी द्वीपान्तरोत्था च कुबेरकाक्षम् ।।
| गुठली, कैथ, रसौत, लाख, हल्दी, दारु हल्दी, सर्वोषधार्धा विजया प्रदिष्टा
सुगन्धवाला, कायफल, काकतुण्डी, लोध, मोचरस, जीर्णाहिफेनं च तथा समानम् । शंखकी भस्म, धायके फूल और वड़के अंकुर । तदर्धभागं खलु वत्सनामं
सब चीजें समान भाग लेकर चावलोंके सादेकतश्चात्र विधाय चूर्णम् ।। | पानीमें पीसकर ११-११ तोला वटक बनाकर छायामें तद्भावितं भृङ्गरसेन सम्यक् सुखावें । इन्हें सेवन करनेसे ज्वरातिसार और
कोलास्थिमात्रा गुटिका विधेया। शूलयुक्त अतिसारका शीघ्र नाश होता है। एवं सा शीतवाते ग्रहणीगदे च
| रक्त शुद्ध होता है। ____ अशोविकारे प्रवलातिसारे॥ | [७४४] कल्पलतावटी (भै. र. । ग्रह.)
x कपड़ेकी बत्तीके बजाए पूर्वाधासके साफ अमृतं हिंगुलं धूर्तबीजं द्वादशरक्तिकम् । उठलसे काम लेना उचित प्रतीत होता है। । प्रत्येकमहिफेनश्च पत्रिंशद्रक्तिकं नयेत् ।।
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