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श्रीधन्वन्तरये नमः
अथ कषाय--प्रकरणम्
कषाय- व्याख्या
कषाय पांच प्रकारके होते हैं
- स्वरसश्व तथा कल्कः क्वाथश्व हिमफाण्टकौ ।
ज्ञेयाः कषायाः पञ्चैते लघवः स्युर्यथोत्तरम् ॥
यथा
अर्थात् स्वरस, कल्क, काथ, हिम, और फाण्ट यह कषाय के पांच भेद हैं । ये उत्तरोत्तर लघु होते हैं, अर्थात् स्वरस सबसे भारी, कल्क उससे हलका इसी प्रकार फाण्ट सबसे हल्का होता है ।
स्वरस
आहतात्तत्क्षणाकृष्टाद्रव्यात् क्षुण्णात्समुद्भवेत् । वस्त्रनिष्पीडितो यथ रसः स्वरस उच्यते ॥
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(गिलोय आदि के समान) गीली औषधियोंको कूटकर कपड़े में निचोड़नेसे जो रस निकलता है उसे स्वरस कहते हैं । यदि गीली औषधियां प्राप्त न होसकें तो :
कुडवं चूर्णितं द्रव्यं क्षिप्तश्च द्विगुणे जले ।
अहोरात्रं स्थितं तस्मात् भवेद्वा रस उत्तमः ॥
औषधिका एक कुड़व चूर्ण लेकर उसको दूने जलमें भिगोकर २४ घंटे रक्खा रहने दे फिर (प्रातः काल मलकर) छानले । इसको भी स्वरस कहते हैं । अथवाः -
आदाय शुष्कद्रव्यं वा स्वरसानामसम्भवे । जलेऽष्टगुणिते साध्यं पादशिष्टश्च गृह्यते ।।
सूखी औषधियोंको आठ गुने जलमें पकाकर चौथाई बाकी रहनेपर छानलें; यह भी स्वरसका काम सकता है।
यथा - चीता, इन्द्रयव और आमले आदिका स्वरस न मिलनेपर इस विधिसे सिद्ध किया हुआ कषाय काममें ला सकते हैं ।
स्वरसकी मात्रा - स्वरस (गीले द्रव्य से निकाला हुआ) भारी होनेके कारण २ ॥ तोलेकी मात्रा में सेबन
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