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भारत - भैषज्य रत्नाकर |
( २१२ )
[ ६८५ ] कतकबीजयोगः (वृ. नि. र. ) कर्षप्रमाणं कतकस्य बीजं
तक्रेण पिष्ट्वा सहमाक्षिकेन । प्रमेहजालं विनिहति सद्यो
रामो यथा रावणमाजधान ॥ निर्मलीके बीज १। तोला लेकर छाछ (तक्र) में पीसकर शहद के साथ सेवन करनेसे समस्त प्रकार के प्रमेह अत्यन्त शीघ्र नष्ट होते हैं । [६८६] कपित्थादिकल्कम (बृ. नि. र. । स्त्रीरो.) कपित्थवेणुपत्रं च सममेकत्र पेपयेत् । मधुना सह पातव्यं तीव्रप्रदरनाशनम् ॥
कैथ और बांसके पत्ते एक साथ पीस कर शहद में मिलाकर पीने से दुस्साध्य प्रदर भी नष्ट हो जाता है।
[ ६८७] कपित्थादि चूर्णम्
(च. संचि. अ. १०) कपित्थमध्यं लीवा तु सव्योपक्षौद्रशर्करम् । कट्फलं मधुयुक्तं वा मुच्यते जठरामयात् ॥
कैथकी गिरी और त्रिकुटे के चूर्णको शहद और खांडमें मिलाकर चाटने से अथवा कायफलके चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करने से उदर रोग शांत होते हैं ।
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यवानी पिप्पलीमूलचातुर्जातकनागरैः । मरिचाग्निजलाजाजीधान्य सौवर्चलैः समैः ॥ वृक्षाम्लघातकी कृष्णाचिल्वदाडिमतिन्दुकैः । त्रिगुणैः पद्गुणसितः कपित्थाष्टगुणैः कृतः ।। चूर्णोऽतिसारग्रहणीक्षयगुल्मगलामयान् । कासं श्वासारुचिं हिक्कां कपित्थाष्टमिदं जयेत् ॥
अजवायन, पीपलामूल, चातुर्जातक (दालचीनी, तेजपात, नागकेसर, इलायची), सोंठ, काली मिर्च, चीता, सुगन्धवाला, जीरा, धनिया, सौंचल नमक प्रत्येक १ - १ भाग । अमलवेत, धाय के फूल, पीपल, बेल की गिरी, दाड़िम और तेंदु | प्रत्येक ३ भाग । खांड ६ भाग और कैथ ८ भाग ।
यह (कपित्थाष्टक) चूर्ण अतिसार, ग्रहणी, क्षय, गुल्म, गलेके रोग, खांसी, श्वास, अरुचि और हिक्का ( हिचकी) नाशक है । [ ६९०] कम्पिलादि चूर्णम् (च. सं. चि. अ. १० ग. नि. ३० प्रमेह, वृ. म. ) कम्पिल्लसप्तच्छदशालजानि
वैभीतरौहीतककौटजानि । कपित्थपुष्पाणि च चूर्णितानि क्षौद्रेण लिह्यात्कफपित्तही ॥ कमीला, सतौना, साल, बहेड़ा, रुहेडा, कुड़ा और कैथ के फूल | सब चीज़े समान भाग लेकर चूर्ण करें । इसे शहदके साथ सेवन करने से कफपित्तज प्रमेह नष्ट होते हैं ।
[६८८] कपित्थादिपेयाः (च. सं. सू. अ. ३) कपित्थबिल्व चांगेरी तकदाडिमसाधिता । पाचनी ग्राहिणी पेया सवाते पाचमूलिकी ॥
[
६९१] करञ्जादिचूर्णम्
कैथ, बेल, चांगेरी, दाड़िम और तक (छाछ) से बनायी हुई पेया ग्राहिणी और पाचन होती है। वातदोष की प्रबलता हो तो पचमूल से सिद्ध पेया देनी चाहिये ।
[वृ. नि. र. अर्शे । भा. प्र. म. खं. २ ] चिरबिल्वानिसिंधूत्थना गरेन्द्रयवारलून् । क्रेण feast निपतत्यसृजासह || करंजवा, चीता, सेंधानमक, सोंठ, इन्द्रजौ
[६८९] कपित्थाष्टकं चूर्णम् (च. द । ग्रह.) और अर | इनका चूर्ण करके तक (छाछ) के
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