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(२०८)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
तत्पादशेषसलिल खलु शोषणीयं । कुमारिमूलं कर्फकं पीत्वा कोष्णजलैर्वमेत् ॥
क्षीरे पलद्वयमिते कुशलैरजायाः॥ विषमं तु ज्वरं हंति वमनेन चिरंतनम् ॥ प्रक्षिप्य माषकानष्टौ मधुनस्तत्र शीतले। १। तोला धीकुमारी की जड़ को किंचित् रक्तातिसारी तत्पीत्वा नैरुज्यं क्षिप्रमवाप्नुयात्।। गर्म पानी के साथ पी कर वमन करने से पुराने ___ कुड़े की १० तोला स्वच्छ छाल को २० | विषमञ्चर का नाश होता है। सेर पानीमें पकावें, जब चौथा भाग रह जाय तो | [६५८] कुलकादिक्वाथः (वै. जि. प्र.वि.) उसे छान कर उसके साथ १० तोला बकरी का | किमु भ्रमयसि प्रिये कुवलयकराभ्यामिदं दूध पकावें । जब केवल दूध बाकी रह जाय तो | मदीय वचनं सुधारससमं समाकर्णय ।। उसे ठंडा कर के उस में ७॥ माशे (आधा कष) | पुराणविषमज्वरे कुलकनिंबसिंहींद्रजा. शहद डाल कर पियें । इस के सेवन करने से रक्ता- मृताधनकषायको मधुयुतो बरीवर्तते ।। तिसार अत्यन्त शीघ्र नष्ट होता है।
पटोल पत्र, नीम की छाल, कटेली, इन्द्रजौ, [६५५] कुटजादि स्वेदः
| गिलोय और नागरमोथे के काथ में शहद मिला (वृ. नि. र., ग. नि. ३३ शोथे) | कर पीने से पुराने विषमञ्चर का नाश होता है । कुटजार्कशिरीषाणां विदलै(?) रण्डनिम्बजैः। [६५९] कुलत्थक्वाथः (१) पत्रैर्युक्तं जलं तप्तं तत्स्वेदो दुष्टशोफहत् ।।
(वृ. नि. र. अश्म.) ___ कुड़े की छाल, आक, सिरस की छाल, अरण्ड | पलद्वयमिते कोष्णे कुलत्थस्य भृते त्वपः(१)। और नीम के पत्ते । इन्हें पानी में पका कर भपारा लवणं शरपुंखेन साधं माषद्वयोन्मितम् ॥ लेने से सूजन का नाश होता है। | क्षिप्त्वा पिवेत्पतेत्तस्य मत्रेण सममश्मरी । [६५६] कुटजाष्टक क्वाथः
शर्करा सिकता चापि दृष्टमेतदनेकधा ॥ (शा. ध. म. खं. अ २) ____ कुलथी के १० तोले किंचितोष्ण (कुछ गरम) कुटजातिविषापाठा धातकीलोध्रमुस्तकैः। क्वाथ में सरफोंके और सेंधा नमक का २ माशे हीबेर दाडिमयुतैः कृतः काथः समाक्षिकः।। । (१६ रत्ती) चूर्ण मिलाकर पीने से पथरी और पेयो मोचरसेनैव कुटजाष्टकसंज्ञकः। शर्करा (रंग) आदि मूत्र के साथ निकल जाती हैं । अतिसारान् जयेद्वातरक्तशूलायदुस्तरान् ॥ ६६०] कुलत्थादिक्वाथः (२) कुड़ा, अतीस, पाठा, धाय के फूल, लोध,
(वृ. नि. र; हिक्का .) नागरमोथा, सुगन्धबाला और अनार की बकली । कुलस्थनागरव्याघ्रीवासाभिः कथितं जलम् । इन के काथ में मोचरस का चूर्ण और शहद डाल | पीतं पुष्करसंयुक्तं हिकाश्वासनिवारणम् ॥ कर पीने से वातातिसार, रक्तातिसार तथा शूल और | . कुलथी, सोंठ, कटेली और बांसेके क्वाथ में आमयुक्त अतिसार का नाश होता है । पोखरमूल का चूर्ण मिलाकर पीनेसे हिचकी और [६५७] कुमारीमूलादिवमनम् | श्वास नष्ट होते हैं। (बृ. नि. र. ज्वरे.)
(?) "जले इति समुचितपाठ'
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