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भारत-भैषज्य-रत्नाकर।
____ अथ एकारादि लेहप्रकरणम् । [५७१] एलादिलेहः
क्षौद्र ततो मन्थहतं निदध्यात् । (र. र., बं. से; अम्लपि.) पलं पलं प्रातरतो लिहेच एलापटोलघनचन्दनधान्यधात्री
पश्चापिबेत्क्षीरमतन्द्रितश्च ।। वांशीवराङ्गदलनागकणाभयाभिः ।
एतद्धि मेध्यं परमं पवित्रं. लेहासिताज्यमधुभिःसितयाथ पित्तं
चक्षुष्यमायुष्यतमं तथैव । हत्यम्लपित्तमरुचिज्वरदाहशोषान् ॥
यक्ष्माणमाशु व्यपहन्ति शूलं छोटी इलायची, पटोलपत्र, नागरमोथा, चन्दन,
पाण्ड्वामयं चापि भगन्दरं च ॥ धनिया, आमला, बंसलोचन, दालचीनी, तेजपात,
न चात्र किश्चित्परिवर्जनीयं नागकेशर, पीपल और हैड़, सब समान भाग
रसायनं चैतदुपास्यमानम् ॥ लेकर चूर्ण करके मिश्री, घी और शहद के साथ मिलाकर अवलेह बनावें। इसे मिश्री के साथ ____ छोटी इलायची, अजमोद, आमला, हैड़, सेवन करने से पित्त, अम्लपित्त, अरुचि, ज्वर, बहेड़ा, खैरसार, नीम, असना (साल भेद) और दाह और शोष का नाश होता है। | साल, (इनके सार) बायबिडंग, भिलावा, चीता, [५७२] एलादिमथः
त्रिकुटा, नागरमोथा और गोपी चन्दन, (या फिट(च. द., बं. से; राजय., सु. चि. अ. ४१) कड़ी), इनके क्वाथ से यथा विधि १ सेर घृत एलाजमोदामलकामयाक्ष
सिद्ध करके ठंडा होने पर-मेश्री १५० तोले, गायत्रिनिम्बाशनशालसारान् । बंसलोचन ३० तोले और शहद २ सेर मिलाकर विडङ्गमल्लातकचित्रकांच
मथनी से मथें। इसे प्रतिदिन प्रातःकाल ५-५ कटुत्रिकाम्भोदसुराष्ट्रिकाश्च ।। तोले खाकर ऊपर से सावधानी पूर्वक (उचित पक्त्वा जले तेन पचेत्तु सर्पि- | मात्रानुसार) दूध पीना चाहिये । यह मन्थ अत्यन्त
स्तस्मिन्सुसिद्धे त्ववतारिते च। मेधावर्द्धक, आंखों के लिये हितकारी, आयुवर्द्धक, त्रिंशत्पलान्यत्र सितोपलाया
यक्ष्मा नाशक एवं शूल, पांडु और भगंदर नाशक दद्यात्तुगाक्षीरिपलानि षट् च ॥ । है। यह रसायन सेवन करने योग्य है एवं इसमें प्रस्थे घृतस्य द्विगुणं च दद्यात् किसी प्रकार के परहेज की भी आवश्यकता नहीं है।
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