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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (१२५) शुक्रमेहमजाक्षीरैः पित्तं शिवसितांन्वितः। देवदारु बच और कूट के काढ़े से अस्थिगत वागु अंजितो निम्ब तोयेन भृतावेशनिवारण :॥ रोग, जायफल के साथ बवासीर और त्रिकुटे के त्रिफलारुबुतैलेन संजयेदुदरामयान् । | साथ सेवन करने से वातज शूल का नाश होता काकमाचीरसैर्वापि नात्र कार्या विचारणा ॥ है । गो मूत्र के साथ सेवन करने से पुरुषत्व उत्पन्न मार्कवस्वरसैः शोफ वा पलाण्डुरसैर्जयेत् । होता है। तथा पुत्रंजीव [जिया पोता) के रस के करजत्वग्रसेरेवं कृमिरोगं न संशयः ॥ साथ सेवन करने से वंध्यत्व (अपना) दूर होता शक्तिकृन्नवकंजाक्षि ! नागवल्लीदलाम्बुना । है । सांप के काटे पर नींबू के रस में पीसकर लेप अजाजीक्षौद्रसंयुक्त ऊष्णवातविघातकः ॥ करने से अथवा सिरस के स्वरस में या धी अथवा वीटकेन युतः स्वर्यः स्वरजिह्वरकोकिले ! । नागरमोथे के रस में पीसकर लेप करने से सर्प । विष का नाश होता है। अन्तवायन और बच के आमशूलं मुरायुक्तः पामां गोमूत्रलेपितः ॥ लेपितो मक्षितो लूनाविषं भृङ्गरसान्वितः । | चूर्ण के साथ खाने से कमर की वातज पीड़ा का तथा पल्लीविपं हन्ति लेपितो भक्षितोऽम्बुना ॥ । नाश होता है । इस रसको श्वास कास में शहद उन्मत्तश्वविष हन्ति मेघनादरसैरयम् ।। और बांसे के रस के साथ, ज्वर में तुलसी के रस के साथ, दैनिक ज्वर में घीकुमार के रस के साथ गोमूत्रेण गुडूच्या वा कुष्ठं कष्टतरं तथा ॥ देना चाहिये । रतौधे में स्त्री दुग्ध में घिस कर न मे रोगो भवेदेवम् यस्येच्छास्ति वराङ्गने ।। आंख में आंजना चाहिए। त्रिफले के साथ देने गुटिमेकां तथाधी वा प्रत्यहं सेव द्धि सः ।। 1 से ऊर्ध्वश्वास का नाश होता है। दाहयुक्त पित्तअश्वचोली रस यथोचित अनुपान के साथ ज्वर में आमले के साथ, शूल में घी, सोजनेकी जड़ सेवन करने से और पथ्य पालन करने से अनेक रोगों का नाश करता है । मूली के रस के साथ । के रस और गोघृत तथा शहद के साथ देना या अद्रक के रस और पीपल तथा शहद के साथ | चाहिए । कर्ण रोग, शिरोव्यथा, पीनस और आधा सेवन करने से वातज शूल, क्षय, खांसी और श्वास ! शीशी का आयफल के चूर्ण से, सूतिका रोग का का नाश होता है । शहद के साथ सेवन करनेसे । घृतकुमारी के रस और तुलसी के रस तथा शहद बलीपलिप्त रोग का नाश होता है । सौंजने के के साथ देने से नाश होता है, अश्वचोली रस मूल की जड़ के रस और गाय के घी के साथ अतिसार में दही या गोमूत्र के साथ और ग्रहणी शूल और ज्यर का तथा मस्तु के साथ अजीर्ण में तक अथवा जायफल के चूर्ण और भैंस के मूत्र का और कमल के रस के साथ सेवन करने से ! के साथ देना चाहिए । कसौंदी के रस और सुहागे शीत ज्वर का नाश होता है । पुनर्नवा के रस के के साथ सेवन करने से अग्निमांद्य का नाश होता साथ सेवन करने से पाण्डु का नाश होता है. है । ब्राह्मी के रस के साथ सेवन करने से बुद्धि तिलपर्णी के रस में घिसकर आंख में आंजने से बढ़ती है । नागरवेल के पान में रखकर खाने से नेत्र रोगों का नाश होता है । चीनी और जीरे के कान्ति बढ़ती है। थोहर के दूध या निर्गुण्डी के साथ सेवन करने से पित्तज्वर का नाश होता है। रस के साथ सेवन करने से गुल्म का नाश होता For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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