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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (११३) उमाफलं वारिणि संविमर्थ गन्धकं च सममत्र मर्दितं दिनत्रयं तेन लभेत शर्म ॥ भृङ्गराजरसकेन संयुतम् ॥ चमकदार अभ्रक सेवन करने से शरीर में | काकमाचिजरसैश्च मर्दित उत्पन्न हुए रोगोंको दूर करने के लिये उमाफल कुक्कुटाख्य पुटपश्चकेन हि । (तीसी) को जलमें घोट घोटकर तीनदिन तक पीवे। | पाचितं हि सितया समं सदा [३१२] अभ्रकहरीतकी (र. रा. सु., अश.) सेवितं सकलरोगघातकम् ॥ मृताभ्रकपलं विशन्मृतलोहस्य पंचकम् ।। रससिन्दूर, शुद्ध हिङगुल, हरतालसत्व १-१ गन्धकस्य पलं पंच त्रिभिद्विंगुणमाक्षिकम् ॥ भाग और शुद्ध गन्धक सब के बराबर लेकर भांगरे पथ्याशतपलं योज्यं धात्रीपलशतद्वयम् । और मकोय के रस में धोट २ कर कुक्कुट पुट सर्वमेकत्र तच्चूर्णं जम्बीरैर्भावयेद्दिनम् ॥ में ५ पुट दे । इसे समान भाग मिश्री के साथ भंगीपुनर्नवाद्रावैःपातालगरुडाकुलैः। सेवन करने से सव रोगों का नाश होता है । भल्लातवह्निकोराटैईस्तिशुण्डी तु लागली ॥ । [३१४] अमृतकलानिधि क्षीरिणीजलकुम्भी च प्रत्येकं प्रत्यहं द्रवैः।। (वृ. नि. र. । ज्वरे) भावयेन्मर्दयेदित्यं मध्वाज्याभ्यां विलोलयेत । अमृतवराटिकमरीचैपिंचनवमांशकैः कुर्यात् ।। स्निग्धभाण्डे स्थितं खादेन्नित्यं निष्कद्वयं द्रयम मुद्गप्रमाणा वटिका ज्वरपित्तसिद्धसावरयोगोत्थं त्रिदोषाासि नाशयेत ॥ कफाग्निमान्द्यहारी स्यात् ॥ ___अम्नक भस्म १०० तोले, लोहभस्म २५ शुद्ध वच्छनागविष दो भाग, कौडीकी भस्म तोले, शुद्ध गंधक २५ तोले, सोनामक्खी की भस्म | ५ भाग, काली मिर्च ९ भाग लेकर खरल करके ३०० तोले, हरड ५०० तोले, आमले १००० मूंगके बराबर गोलियां बनावे । यह ज्वर, पित्त तोले, इन सब पदार्थोंको एकत्र चूर्ण करके १ | और कफज अग्निमांद्य का नाश करता है। दिन जंबीरी नींबूके रसकी भावना दे। फिर भांगरा, [३१५] अमृतसुन्दरो रसः सांठी, पातालगरुडी, भिलावा, चीता, कुरंटक, हाथी (र. प्र. मु. अ. ८) शुंडी, कलहारी, दुदी और जलकुम्भी इनमें से प्रत्येक मनःशिलामाक्षिकतालगन्धं के रसमें एक एक दिन खरल कर, तदनन्तर मधु मृतं तथा खर्परमेव तुल्यम् । और घी में मिलाकर रख छोड़े । इसमें से ८ माशे, संमर्दितं चादरसेन सम्यग् । नित्य खाने से त्रिदोषजन्य बवासीर दूर होती है ! वासारसैश्चेत्सुरसारसेन । [३१३] अमरसुन्दरो रसः आपूरितं नाम्रजपात्रमध्ये (र. प्र. सु. । अ. ८) तत्संपुटं वै त्रिदिनं प्रपाचयेत् । सूतभस्म दरदं विशोधितं तं स्वाङ्गशीतं हि समुद्धरेद्वै तालसत्वमिति चैकभागिकम् । वल्लोन्मितं तं परिभक्षयेच्च ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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