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भारत-भैषज्य रत्नाकर
(९२)
शुद्ध मीठा तेलिया १ भाग और ताम्र भस्म २ भाग लेकर कज्जली करके हंसपादीके रसकी भावना देकर कपर मिट्टी की हुई आतशी शीशी में भरकर यथाविधि वालुका यन्त्र में ३ पहर तक पकावे । फिर स्वांग शीतल होने पर रसको निकालकर उससे आधा शुद्ध मीठा तेलियेका चूर्ण मिलाकर खूब घोटे और चीता, त्रिकुटा, सेंधानमक का चूर्ण मिलाकर अद्रकके रसकी भावना दे ।
इसे १ रत्ती प्रमाण में सेवन करनेसे मन्दाग्नि, सन्निपात, धनुर्वात, अजीर्ण, शूल, क्षय, खांसी, तिल्ली और गुल्मका नाश होता है । [२६१] अग्निकुमारो रसः (बृहदाद्यः) (२९) (र. चं । अजीर्ण)
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शुद्धतं द्विधा गन्धं गंधतुल्यं च टङ्कणम् । फलश्रयं यवक्षारं व्योषं पश्चपटूनि च । द्वादशैतानि सर्वाणि रसतुल्यानि दापयेत् । संम सप्तधा सर्वं भावयेदार्द्रकजैद्रवैः ॥ संशोध्य चूर्णयित्वा तु भक्षयेदाद्रकाम्बुना । शाण मात्रं वयो वीक्ष्य नानाऽजीर्ण प्रशान्तये ।। रसधाग्निकुमारोऽयं महेशेन प्रकाशितः । महानिकारकश्चैष प्रतापे कालभास्करः । अग्निमांद्यभवान् रोगान्
शोथं पाण्ड्वामयं जयेत् । दुर्नामग्रहणीसामरोगान् हन्ति न संशयः ॥ यथेष्टाहारचेष्टस्य नास्त्यत्र नियम कचित् ॥
शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, सुहागे की खील २ भाग, त्रिफला, यवक्षार, त्रिकुटा, पांचों नमक, ये बारह चीजें १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक की कज्जली बनावें और फिर अन्य औषधियों का चूर्ण मिलाकर
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अद्रकके रसकी ७ भावना दे । फिर सुखाकर चूर्ण करके रक्खे । इसे आयुके अनुसार ४ माशे तक की मात्रा में अद्रकके रसके साथ सेवन करने से अनेक प्रकार का अजीर्ण रोग नष्ट होता है । यह महेश द्वारा प्रकट किया हुवा अग्निकुमार रस अत्यन्त अग्निवर्धक है । रोगों का नाश करने के लिए यह रस प्रलय कालके सूर्य के समान प्रतापवान है यह अग्निमान्ध जनित रोग, शोथ, पाण्डु, बवासीर, संग्रहणी, और आमविकारों को अवश्य नष्ट कर देता है और अग्नि प्रदीप्त करता है । इसके सेवन कालमें आहारादि का कोई विशेष नियम नहीं है ।
[२६२] अग्निकुमारो रसः (३०) (यो. र., वृ. नि. र., र. च., ग्रहण्य) भागो दग्धकपर्दकस्य च तथा शङ्खस्य भागद्वयं; भाग गन्धक तयोर्मिलितयोः
पिद्वा मरीचादपि ।
भागस्य त्रितयं नियोज्य सकलं
नानावहितो रसोऽयमचिरान्माद्यं जयेद्दारुणम् घृतेन खण्डैः सह भक्षितोऽसौ क्षीणान्नरान् हस्तिसमान् करोति । समागधीचूर्णघृतेन लीवा
नरः प्रमुञ्चद्ग्रहणीविकारात् ॥ शोषज्वरारोचकशूलगुल्मान्
पाण्डूदराशग्रहणीविकारान् । तक्रानुपानी जयति प्रमेहान् युक्तया प्रयुक्तोऽग्निसुतो रसेन्द्रः ॥
कौड़ी भस्म १ भाग, शंख भस्म २ भाग, खरल करके । समान भाग मिलित पारद गन्धककी कज्जली १
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निम्बूरसैर्मर्दितम्,