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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-य-रत्नाकर (८८) दिन तक पकायें । प्रारम्भमें बहुत मृदु अग्नि दें और फिर धीरे धीरे अग्नि तीव्र करते रहें। इसके बाद यन्त्रके स्वांग शीतल होने पर उसमें से औषध को निकाल कर ताम्रकी नली समेत पीस लें। (यदि ताम्रकी भली प्रकार भस्म न हुई हो तो उसे समान भाग पारद गंधककी कज्जलीके साथ घोटकर शराव सम्पुट में बन्द करके गजपुटमें फूंक दें और आवश्यकता हो तो इसी प्रकार कई पुट देकर निरुत्थ भस्म कर लें) अब इसमें २|| तोले काली मिर्च और ७|| माशे शुद्ध बच्छनागका चूर्ण मिलाकर खरल करें और शीशी में भरकर सुरक्षित रक्खें । श्री नन्दी महाराजका मत है कि इसमें कालीमिर्चका चूर्ण सम्पूर्ण रसके बराबर और बच्छनागका चूर्ण १| तोला मिलाना चाहिए । इस रसश्रेष्ठ अग्निकुमारका आविष्कार देवी भगवती और श्रीनन्दी महाराजने किया है । यह वैद्यको अत्यन्त यश दिलानेवाली फलप्रद औषध है। और इसके सेवन से आनाह नष्ट होता है । यह पाचन, दीपन और रोचक है । अष्ठीलिका तथा सामग्रहणीको शीघ्र नष्ट करता है । कफके रोग, कण्ठरोग, अग्निमांद्य, कफवातज क्षय, समस्त प्रकारके शूल रोग, श्वास, कास, स्थूलता, पाण्डु, शोथ, बातज रोग, प्रत्यष्टीला और जलकूर्म रोग ( जलोदर तथा अत्यन्त प्रवृद्ध और कठोर यकृत् प्लीहा) आदि रोग इसके सेवनसे नष्ट हो जाते हैं। यह बलकारक और भोज्य भक्ष्य तथा पेय पदार्थों में आनन्द दायक है ( इसकी सहायता से उत्तमोत्तम पदार्थ खाकर शीघ्र पचाए जा सकते हैं ।) इसे पानके साथ खानेसे रति-शक्ति बढ़ती हैं। अनुपान पीपलका चूर्ण, मिश्री और घृत । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नदी महाराजका कथन है कि रोगोचित यह समस्त रोगोंको इस अनुपान के साथ देने से प्रकार नष्ट कर देता है जिस प्रकार दुष्ट पत्नी मनोरथों को । यदि इसके खानेसे दाह हो तो शीत जलका अवसेचन और कपूर युक्त चन्दनका आलेपन करना चाहिए | मन्द मन्द पवन के सेवन करने, ताजी दही में मिश्री मिलाकर खाने और नारियलका जल पीनेसे भी रस जनित दाह शान्त हो जाती है । इसके अतिरिक्त दाहशान्तिके लिए मधुर और शीतल (शरदत आदि) पेय पिलाने और अन्य शीतल उपचार करने चाहिएं । सुहागेकी खील, चौलाइकी जड़, मिश्री, मुलैठी और चन्दन समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे कांजी के साथ पीने से ( दाह आदि) समस्त रसविकार नष्ट होते हैं । यदि छर्दि होने लगे या तृषा वढ़ जाए तो कपित्थ फलके गूदे में मिश्री मिलाकर खिलाना चाहिए । रजनित दाह में समस्त शरीर में घृतकुमारीके रसका या गोदुग्धका लेप करना, दूधमें मधु और मिश्री मिलाकर पीना तथा बाराही कन्द और बन्धूक ( गुलदोपहरी ) का क्वाथ पीना भी लाभदायक है । इस अग्निकुमार रसके प्रभावको भगवती गिरिजा या भगवान नन्दीकेश अथवा नारायण ही पूर्णतः जानते हैं । [२५२] अग्निकुमारो रसः २० (र. सु.) कर्पूरं च लवङ्गं च चव्यकं चित्रकं तथा । दाडिमाम्लं विशेषेण शृङ्गवेरं च रेणुकाम् || एतानि समभागानि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । यवक्षारं तथा स्वर्जी टङ्कणं लवणानि च । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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