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अकारादि-रस
(८३)
दिन खग्ल करके सम्पुट में रखकर १ पहर तक | 'वैरोचन' रस की भांति पकावे । इसके सेवन दीप्ताग्निमें पकावे । फिर निकाल कर अद्रक और | करने से अनेक प्रकार के रोगों का नाश होता है। चीतके रसकी ७-७ भावना दे । इसे ५ माषा इसके ऊपर घी कुंवारके रसमें सेंधानोन मिलाकर की मात्रा से मधुके साथ सेवन करनेसे और उप- | लेहकी तरह बनाकर चाटें, यह अनुपान है। रसे गुड़ और सोंठ ११-१। तोला मिलाकर खानेसे | इससे अग्नि प्रदीप्त होती है। अग्निप्रदीप्त होती है। ( व्यवहारिक मात्रा २-३ [२४२] अग्निकुमारो रसः (१०) (र. र.) रत्ती)।
पलैकं मूञ्छितं मृतं मरीचं हिगुजीरकम् । [२४०] अग्निकुमारो रसः (८) (र. र.) प्रतिकर्ष वचाशुण्ठी तत्सर्व भृङ्गजैवैः ॥ शुद्धसूतं विषं गन्धमजमोदां फलत्रिकम् । दिन मद्य लिहेन्माषं मधुवह्निदिने पिवेत् । खर्जिक्षारं यवक्षारं वहिसैन्धवजीरकम् ॥ माषैकं भक्षयेच्चानु दाडिमं नागरं गुडम् ।। सौवर्चलं विडङ्गानि सामुद्रं त्र्यूषणं समम् । कजली ५ तोला, काली मिर्च, हींग, जीरा, विषमुष्टिं सर्वसमां जम्बीराम्लेन मद्देयेत् ॥ | वच और सोंठ, ११-१। तोला लेकर सबको एक मरिचाभा वटी खादे वह्निमान्द्यप्रशान्तये। दिन भांगरे के रसकी भावना दें। इसे चीते के पथ्यां शुण्ठी गुडं चानु पलार्द्ध भक्षयेत्सदा॥| चूर्ण और शहद के साथ मिलाकर चाटने और
शुद्ध पारा, शुद्ध विष, शुद्ध गन्धक, अज- ऊपर से गुड़ और सोंठ का चूर्ण तथा दाडिम का मोद, त्रिफला, सज्जीखार, यवक्षार, चीता, सेंधा- रस पीनेसे अग्नि प्रदीप्त होती है । मात्राः-१ माषा । नमक, जीरा, सौंचल, वायविडंग, समुद्रनमक, | [२४३] अग्निकुमारो रसः (११) (र. र.) त्रिकुटा प्रत्येक समान भाग, कुचला सबके बगबर द्विपलं शुद्धताम्रन्तु शुद्धसूतं पलत्रयम् । लेकर प्रथम पारा गन्धककी कजली बनाकर सबको | पिष्टं जम्बीरजैवैः कुर्यात्खल्वे भिषग्वरः ।। जंबीरीके रसमें धोटकर मरिचके बराबर गोलियां | गन्धकं चामृतं तत्र प्रत्येकं पलपञ्चकम । बनावे । इसको खाकर ऊपरसे हैड सोंठ और गुड़
| कजलीकृत्य तत्सर्व भाव्यं निम्बुकजैवैः ॥ २॥-२॥ तोला खानेसे अग्निमांद्य नष्ट होता है ।
चूर्णित पिठरीमध्ये क्षिपेनिम्बुकजेद्रवे । [२४१] अग्निकुमारो रसः (९) (र. र.)
धर्मे दिनाष्टकं भाव्यं द्रवो देयः पुनः पुनः।। रसभस्मसमं गन्धं धात्री द्विगुणटङ्कणम् । भद्रावस्यहं भाव्यं त्रिवारमाकजैद्रवैः । दिनं जम्बीरजैविमद्य पूर्या वराटिका ॥ विधामृतारसैर्भाव्यं रसो ह्यग्निकुमारकः ॥ रुद्धा गजपुटे पश्चाद्यथा वैरोचनो रसः।।
अस्य गुञ्जात्रयं खादेदग्निमान्धप्रशान्तये ॥ तथा कुर्याच रोगाणां फलं तद्वन्न संशयः
___शुद्ध ताम्र (भस्म) १० तोला और पारा १५ कुमारी सैंधवं चानु लेहयेदग्निदीपनम् । तोला सब को जम्बीरी नीबूके रस में घोटे फिर
रस सिन्दूर, गन्धक १-१ भाग, आमला, गन्धक और शुद्ध वच्छनाग २५-२५ तोला डालकर सुहागा २-२ भाग । १ दिन जम्बीरी नींबू के कजली करके कांच की बरनी में भरदे और जरस में खरल करके कौड़ियों में भरकर गजपुट में ' म्बीरी नींबूके रसकी भावना दे। धूप में सुखाकर
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