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भामिनी विलास
वे भी किसी मानेमें किसीसे दबते न थे और समय-समयपर करारा प्रहार करते रहते थे। अपनी ऐसी ही कविताओं को चुनकर उन्होंने इस विलास में रक्खा है और इसे प्रास्ताविक या अन्योक्ति विलास कहा है । प्रास्ताविक शब्दका अर्थ है प्रारम्भिक । इस अर्थ में इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं है । अन्योक्ति का अर्थ है अन्यको लक्ष्य करके कहा जाय किन्तु घटे किसी अन्यपर । वैसे अन्योक्ति नामसे लक्षण-ग्रन्थकारों ने कोई अलंकार माना नहीं है । अप्रस्तुतप्रशंसाका ही दूसरा नाम अन्योक्ति है । उसमें भी अप्रस्तुत से प्रस्तुतकी प्रतीति कराई जाती है । इसमें १०९ पद्य हैं जिनमें केवल कुछ पद्योंको छोड़कर शेष सभी में किसी न किसी अप्रस्तुत से प्रस्तुत की प्रतीति होती है और सभी में प्रायः किसी न किसी रूपमें पण्डितों या पण्डितराजकी उपेक्षा करनेवालोंपर कटाक्ष किया गया है । इसमें ३४ अन्योक्तियाँ हैं अर्थात् ३४ पदार्थोंको अप्रस्तुत बनाकर इन्होंने अपना गुबार निकाला है, जिनकी सूची आगे दी गई है । प्रत्येक पद्य में पण्डितराजने जो कटाक्ष किया है वह मर्मस्पर्शी है। कई पद्योंसे इनके पुरातन वैभव तथा तत्कालीन विपन्नावस्था का भी चित्रण होता है । कुछ पद्य केवल उपदेशपरक भी हैं । इनका विश्वास है कि १. जैसे—
पुरा सरसि मानसे विकचसारसालिस्खलत्
स पल्वलजलेऽधुना
परागसुरभीकृते पयसि यस्य यातं वयः । मिलदनेकभेकाकुले
मरालकुल नायकः कथय रे कथं वर्तताम् ॥ ( प्रास्ता० २ )
२. देखिये
गीर्भिर्गुरूणां परुषाक्षराभिस्तिरस्कृता यान्ति नरा महत्त्वम् । अलब्धशाणोत्कषणा नृपाणां न जातु मौलो मणयो वसन्ति ॥ ७१ ॥
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