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अन्योक्तिविलास
१२३ कोशके अनुसार चूड़ा, किरीट और केशीको बांधनेपर जो बनता है उसे मौलि कहते हैं-चूड़ा किरीट कशाश्चं संयता मौलयस्त्रयः अमरः ।
इस पद्यको भी पण्डितराजने रसगंगाधरमें वैधर्म्यप्रतिपादिता प्रतिवस्तूपमा अलङ्कारके उदाहरणमें रक्खा है। उपजाति छन्द है, इसमें एक पाद इन्द्रवज्रा और एक उपेन्द्रवज्रकिा है, इन्द्रवज्रामें त त ज गुगु होते. हैं और उपेन्द्रवज्रामें पहली मात्रा लघु हो जाती है ॥७॥ गुणोंके साथ दोष भी अवश्य होता हैवहतिः विषधरान् पटीरजन्मा
शिरसि मसीपटलं दधाति दीपः। विधुरपि भजतेतरां कलङ्क"
पिशुनजनं खलु: बिभ्रति क्षितीन्द्राः ॥७२॥ अन्वय--पटीरजन्मा, विषधरान, वहति, दीप, शिरसि, मसीपटलं, दधाति, विधुः, अपि, कलाई, भजतेतरां, क्षितीन्द्राः, पिशुनजनं, बिभ्रति, खलु।
शब्दार्थ-पटीरजन्मा = मलयज ( चन्दन )। विषधरान् = सर्पोको, . वहति = धारण करता है । दीपः = दीपक । शिरसि माथेपर । मसीपटलं= काजलसमूहको। दधाति = धारण करता है। विधुः अपि = चन्द्रमा भी। कलङ्क = कालिमाको । भजतेतरां = निरन्तर लिये रहता है । खलु=निश्चय ही। क्षितीन्द्राः = राजालोग । पिशुनज़नं = खलसमूहको। बिभ्रति =धारण करते हैं ।
टीका-पटीरो मलयः, तस्माज्जन्म यस्य सः, पटीरजन्मा चन्दनः । । विषधरान् = सन्; वहति - धारयति । दीपः शिरसि स्वमस्तके, मसीपटलं कज्जलसमूह, (मस्यति इति, मसी परिणाम + अच् परिणामो
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